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________________ कर्मफल : यहाँ या वहाँ, अभी या बाद में ? ३२७ भलीभांति होने लगा। परन्तु वह पैदा हुआ तभी से बीमार रहने लगा। प्रतिदिन उसके इलाज में डाक्टरों और दवाइयों में खर्च होने लगा। वह भी अपने पुत्र की रोग-मुक्ति के लिए पैसा पानी की तरह बहाने लगा। परन्तु बीच-बीच में कुछ ठीक हो जाता, फिर कुछ दिनों बाद वह पुनः बीमार पड़ जाता। यों करते-करते १८ वर्षों बाद जब वह स्वस्थ हुआ तो धूमधाम से उसका विवाह कर दिया। विवाह के बाद फिर वह बीमार रहने लगा। ज्यों-ज्यों इलाज कराया, त्यों-त्यों बीमारी बढ़ती गई। दवा-उपचार का खर्च भी बढ़ता गया। एक दिन बीमार पुत्र के सिरहाने की ओर बैठ कर पिता उसके सिर पर हाथ फिराता हुआ कहने लगा-“बेटा! अब कैसे है तेरे ? तू चिन्ता न कर, जितना भी पैसा खर्च होगा, करूँगा।" लड़का बोला"पिताजी! अब मैं ठीक नहीं होऊंगा।" पिता-“ऐसी क्या बात है, बेटा! तू ठीक हो जाएगा।" पुत्र-“पिताजी! अब आपके पास कितने रुपये रहे हैं ?" पिता बोला-“कर्ज लेकर भी मैं तेरा इलाज कराऊंगा। तू चिन्ता न कर।" रुग्ण पुत्र अपना स्वर बदल कर बोला-"क्या आप उस पंजाबी को जानते हैं, जो आपके यहाँ ठहरा था, और आपकी बहन ने जिसकी हत्या करके उसके सब रुपये ले लिये थे!'' पिता ने कहा-“ऐसी बहकी-बहकी बातें मत कर। तू कैसे जानता है, उस पंजाबी को?" ___लड़के ने आवाज बदलकर कहा-“वह (पंजाबी) मैं ही हूँ। जिस दिन आपके सब रुपये मेरे इलाज में खर्च हो जाएंगे, उसी दिन मेरा देहान्त हो जाएगा।" इस प्रकार की बात सुनने के बाद पिता के मन में खलबली मच गई। चलचित्र की तरह उस पंजाबी अतिथि की हत्या दृश्य आँखों के समक्ष तैरने लगा। . पिता ने पूछा-“तेरे साथ जिस लड़की का विवाह हुआ है, उसने क्या गुनाह किया था, तू उसे विधवा बनाकर छोड़ जाएगा?" पुत्र बोला-“उसने ही तो सारे पापड़ बेले थे। उसने ही मुझे मारा था। उसी का फल वह रो-रोकर भोगेगी।" जिस दिन लड़के के इलाज में उस पिता का सारा रुपया खर्च हो गया, उसी दिन लड़के के प्राणपखेरू उड़ गए। उस लड़के की पत्नी जो उसकी हत्यारी थी। उसे गलित कुष्ट फूट निकला। वह रिब-रिबकर छह महीने बाद ही मर गई। उस लड़के के पिता ने जो व्यापार किया था, उसमें घाटा लग गया, पूंजी सारी खत्म हो चुकी थी। पुनः वैसी ही दीन-हीन परिस्थिति हो गई। इस परिस्थिति को देखकर उसे संसार से विरक्ति हो गई। काशी में जाकर उसने भगवा वेष धारण कर लिया, वह संन्यासी हो गया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004243
Book TitleKarm Vignan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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