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३२८ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मफल के विविध आयाम (५)
यह है-इस जन्म (लोक) में किये हुए कर्म के इसी लोक (जन्म) में फलभोग का ज्वलन्त उदाहरण। इस लोक में कृत कर्म का फलभोग अगले लोक (जन्म) में
फलभोग का दूसरा विकल्प है-इस लोक में कर्म किया और उसका फल भुगतमा पड़ा अगले लोक (जन्म) में।
एक व्यक्ति ने किसी साहूकार से दस हजार रुपये कर्ज लिये। साहूकार के बार-बार तकाजा करने पर वह उसे टरकाता रहा। नीयत खराब कर ली। वह साहूकार. तो कर्ज चुके बिना ही मर गया। उसने उसके पुत्र के रूप में जन्म लिया। वयस्कं होते ही वह बीमार रहने लगा। इलाज कराने पर भी ठीक न हुआ। पूरे दस हजार रुपये उसकी चिकित्सा में जब खर्च हो गए, तब वह (कर्जदार से) बोला-तुम्हारे दस हजार रुपये खर्च हो गए, मेरा तुमसे जितना लेना था, वह आज चुकता हो गया। अब मैं आज ही शरीर छोड़ रहा हूँ। और सचमुच ही पूर्वजन्म के कर्ज लेकर वापस न चुकाने के कर्म का फल अगले जन्म में भुगतना पड़ा।
यह है इस लोक (पूर्वजन्म) में बाँधे हुए कर्म का फलभोग अगले जन्म (परलोक) में चुकाने या कर्मफल पाने का ज्वलन्त उदाहरण। परलोक में कृत कर्म का फलभोग आगामी जन्म में, तथा इस जन्म में भी
तीसरा विकल्प है, किसी ने परलोक में कर्म किया, उसका फल इस लोक में भोगना पड़े।
भगवान् महावीर ने त्रिपृष्ठ वासुदेव के भव में शय्यापालक के कानों में तेज गर्म किया हुआ शीशा उँडलवाया और उसे तड़फा-तड़फा कर निर्दयतापूर्वक मरवा डाला था। इस क्रूर कर्म का फल उन्हें अगले भव में सप्तम नरकगति-प्राप्ति के रूप में भोगना पड़ा। नरक में उन्हें भयंकर यातनाएँ, पद-पद पर कष्ट और वेदना भोगनी पड़ी। केवल इतने से ही-एक जन्म में प्राप्त दारुण विपाक (घोर कर्मफल भोग) से ही, उस क्रूर कर्म का फल भोगने से ही छुट्टी नहीं हो गई। तीर्थंकर महावीर के भव में फिर उनके कानों में कीले ठोके गए; तब जाकर उन कर्मों से छुटकारा मिला।
हुआ यह कि वर्धमान महावीर एक जगह कायोत्सर्ग में खड़े थे। एक ग्वाला आया और अपने बैलों को उनके आसपास छोड़कर यह कहता हुआ चला गया-“बाबा! मेरे
१. (क) परमार्थ (गुजराती मासिक पत्रिका) से सार संक्षेप
(ख) जैनधर्म : अर्हत् और अर्हताएं से भावांश ग्रहण, पृ. २२७
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