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________________ कर्मफल : यहाँ या वहाँ, अभी या बाद में ? ३२१ प्रकार कुपथ्य करने वाला व्यक्ति भी तत्काल बीमार नहीं पड़ जाता, रोग के परमाणु तो तत्काल आते हैं, किन्तु धीरे-धीरे संचित होकर वे कई महीनों या वर्षों बाद एक दिन कठोर एवं दुःसाध्य रोग का रूप धारण करते हैं। अर्थात्-किसी भी क्रिया का मुख्य फल तो तत्काल अव्यक्त रूप में मिल जाता है, किन्तु उस फल का उपभोग प्रायः लम्बे अर्से बाद होता है। वैदिक पुराणों में भी कहा गया है कि गाय के गर्भवती होते ही तत्काल शिशु पैदा नहीं हो जाता, उसमें समय लगता है, उसी प्रकार जगत् में कर्म भी तत्काल (फलभोग के रूप में) फलित नहीं होता। “कर्म के फलोपभोग का नियम कर्म के अर्जन के नियम से भिन्न होता है। अर्जित होते ही कर्म प्रायः तत्क्षण सक्रिय नहीं होता।" “एक नवजात शिशु जन्म लेते ही पिता की सम्पत्ति का अधिकारी तो हो जाता है किन्तु उसे पूर्ण अधिकार तभी प्राप्त होता है, जब वह बालिग या वयस्क हो जाता है। जब तक वह नाबालिग अवस्था को पार नहीं कर लेता, तब तक उस बच्चे को पिता की सम्पत्ति का कार्यकारी स्वामित्व अर्थात् सक्रिय मालिकी हक प्राप्त नहीं होता; भले ही उसे जन्मजात स्वामित्व प्राप्त हो गया हो। वयस्क होने पर ही उसे पिता की सम्पत्ति के उपभोग का तथा सक्रिय स्वामित्व का अधिकार मिलता है । "" सत्ता में पड़े हुए बद्धकर्म फलभोग नहीं करा पाते यही तथ्य कर्मविज्ञान के सम्बन्ध में समझ लीजिए । पुद्गल-परमाणुओं के रूप में या कर्मबन्ध अथवा कर्मानव के रूप में जो कर्म अर्जित हुआ है, वह प्रायः तत्काल कार्यकारी नहीं होता। अमुक अवधि तक वे कर्म-परमाणु या बद्ध कर्म सत्ता रूप में (संचित) पड़े रहते हैं, वे उदय में नहीं आते। इसका अर्थ यह हुआ कि वे कर्मपरमाणु अस्तित्व में अवश्य हैं, किन्तु फलभोग कराने में अभी कार्यक्षम नहीं हुए हैं। कर्मों के सत्ता में पड़े रहने के काल को जैन कर्मविज्ञान की परिभाषा में अबाधाकाल कहते हैं। अर्थात् सत्ता में रहे हुए (संचित) कर्म कुछ भी कर सकने यानी फल भुगवाने में समर्थ नहीं हुए हैं, परिणाम को क्रियान्वित करने की क्षमता अभी उन संचित (अर्जित) कर्मों में नहीं आई। उनका अव्यक्त रूप में अस्तित्व है, व्यक्तरूप में वे नहीं आए। जैसे- किसान बीज बोता है, वह बीज तुरंत अभिव्यक्त नहीं हो जाता । अंकुर रूप में उस बीज के अभिव्यक्त होने में, अर्थात् - अंकुर फूटने में कुछ समय लगता है। अंकुर फूटने के पश्चात् धीरे-धीरे वह पौधा बनता है, और आगे बढ़ते-बढ़ते एक दिन विशाल वृक्ष के रूप में अभिव्यक्त हो जाता है। १. (क) कर्मवाद से साभार भावांश ग्रहण (ख) भविष्य पुराण में देखें- नहि लोके कृतं कर्म सद्यः फलति गौरिव ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004243
Book TitleKarm Vignan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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