________________
३१८ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मफल के विविध आयाम (५)
आस्थाहीन हो गए हैं, होते जा रहे हैं। इस विषय में हम अनेक पूर्वपक्ष और उत्तरपक्ष प्रस्तुत करके कई कर्मों का फल तत्काल न मिलने के विषय में विस्तार से शंका-समाधान कर्मविज्ञान के प्रथम खण्ड में 'कर्म के अस्तित्व के प्रति अनास्था अनुचित' नामक निबन्ध में प्रतिपादित कर आए हैं। कर्म अभी और फल अभी नहीं : कर्मविज्ञान पर आक्षेप
किन्तु आचार्य रजनीश जैसे कुछ बुद्धिवादी उस विषय में दिये गए समाधान को नहीं मानते। उनका केवल एक ही तर्क है कि . . .“कार्य-कारण के बीच अन्तराल नहीं होता, अन्तराल हो ही नहीं सकता। अगर अन्तराल आ जाए तो कार्य-कारण विच्छिन्न हो जाएँगे, उनका सम्बन्ध टूट जाएगा। . . . कहा गया कि इस जन्म के पुण्य का फल अगले जन्म में मिलेगा, यदि दुःख है तो इसका कारण पिछले जन्म में किया गया कोई पाप होगा। ऐसी बातों का चित्त पर गहरा प्रभाव नहीं पड़ता।...अगला जन्म अंधेरे में खो जाता है। अगले जन्म का क्या भरोसा ? पहले तो यही पक्का नहीं कि अगला जन्म होगा या नहीं? फिर यह भी पक्का नहीं कि जो कर्म अभी फल दे सकने में असमर्थ है, वह अगले जन्म में फल देगा ही। अगर एक जन्म तक कुछ कमों के फल रोके जा सकते हैं, तो अनेक जन्मों तक क्यों नहीं?...अगर कोई आदमी सुख भोग रहा हो तो अपने पिछले अच्छे कर्मों के कारण, लेकिन इस समस्या को सुलझाने के दूसरे उपाय भी थे और असल में दूसरे उपाय ही सच हैं।" कर्म के कार्य-कारण-सिद्धान्त के विषय में कुतर्क और समाधान
यह सत्य है कि भौतिक विज्ञान कार्य-कारण-सिद्धान्त पर खड़ा है। अगर कार्य-कारण सिद्धान्त को हटा दो तो भौतिक विज्ञान का सारा भवन धराशायी हो जाएगा। चार्वाक और ह्यूम के सिद्धान्त का कर्मविज्ञान द्वारा निराकरण ।
भारतवर्ष में चार्वाक ने इस कार्य-कारण-सिद्धान्त को नहीं माना। इसी प्रकार इंग्लैण्ड में ‘ह्यूम' नामक दार्शनिक ने भी इस सिद्धान्त को गलत सिद्ध करना चाहा। परन्तु दोनों ही भौतिक विज्ञान और कर्मविज्ञान के कार्य-कारण-सिद्धान्त को असत्य सिद्ध न कर सके। अगर इस विवाद में चार्वाक जीत जाता तो धर्म एवं कर्म का अस्तित्व भारत से उठ जाता और यदि राम विजयी हो जाता तो भौतिक विज्ञान में कार्य-कारण-सिद्धान्त का जन्म नहीं होता।
१. देखें-जिनवाणी कर्मसिद्धान्त विशेषांक में प्रकाशित आचार्य रजनीश का लेख-'कर्म और
कार्य-कारण सम्बन्ध' पृ. २७३ .
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org