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________________ २९८ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : कर्मफल के विविध आयाम (५) नेता या अग्रणी का प्रभाव या संक्रमण सामूहिक होता है परिवार, जाति, सम्प्रदाय या समाज नेता, नायक अथवा अग्रणी के आधार पर चलता है। परिवार आदि ये सब समाज के घटक हैं। ये कुछेक कुशल व्यक्तियों के सहारे चलते हैं। अतः किसी भी सामाजिक परिणाम के लिए कतिपय अग्रगण्य व्यक्तियों पर निर्भर रहना पड़ता है । परन्तु उसकी संक्रमणशीलता अथवा प्रभावशालिता पूरे समाज पर होती है। व्यक्ति आत्म-केन्द्रित होते हुए भी समाज, राष्ट्र एवं विश्व से सम्बद्ध है।। कुछेक व्यक्तियों या राष्ट्रों की वृत्ति प्रवृत्ति का प्रभाव कभी-कभी सारे राष्ट्र अथवा विश्व पर भी पड़ता है। इसीलिए पहले कहा गया था - परिवार या समाज के नेता, शासक या अग्रणी के गुण-दोषों का प्रभाव या संक्रमण सामाजिक होता है। कर्म की सामूहिक फल प्राप्ति : निमित्त की अपेक्षा से इसी प्रकार कर्मविज्ञान के अन्तर्गत कर्म के सामूहिक या सामाजिक फल प्राप्त होने में उपादान और निमित्त की दृष्टि से विचार करना चाहिए। एक व्यक्ति ने अणुबम का प्रयोग किया। एक साथ एक लाख मनुष्य मारे गए। यहाँ उपादान की अपेक्षा से यह नहीं कहा जा सकता कि अमुक व्यक्ति ने एक लाख आदमियों को मार डाला, किन्तु निमित्त की दृष्टि से कहा जा सकता है, वह व्यक्ति मारने वाला है। यदि मनुष्य मरणशील नहीं होते अथवा उनमें मरने की योग्यता या क्षमता न होती तो अणुबम उनका बाल भी बांका नहीं कर सकता था। अतः मरण का उपादान वे सब व्यक्ति हैं, निमित्त इस व्यक्ति का एवं अणुबम का मिल गया, वे मर गए। निमित्त का काम उपादान को व्यक्त कर देना है । उपादान निष्क्रिय होता है, उसे सक्रिय एवं प्रभावी बना देना निमित्त का कार्य है। निमित्त की दृष्टि से ही नहीं, उपादान दृष्टि से भी विचार करो जीवन का सारा व्यवहार निमित्त के आधार पर चलता है। उपादान की दृष्टि से सोचें तो कोई किसी व्यक्ति या समूह का भला नहीं कर सकता; किन्तु निमित्त की दृष्टि से कहा जाता है - अमुक व्यक्ति ने अमुक को या अमुक समूह को सुखी कर दिया, अथवा दुःखी कर दिया। फलतः निमित्त की प्रशंसा या निन्दा की जाती है। निमित्त के बिना मनुष्य का कार्य या व्यवहार नहीं चल सकता । किन्तु निमित्त को पकड़ कर बैठ जाना बुद्धिमानी नहीं है। ऐसा करने से पुरुषार्थहीनता भी परिलक्षित होती है। अतः पहले किसी घटना या परिस्थिति का उपादान की दृष्टि से विचार या चिन्तन करना चाहिए। उपादान की दृष्टि से कर्मसिद्धान्त यह नहीं कहता कि अमुक व्यक्ति सुख या दुःख देने वाला है। किन्तु निमित्त की दृष्टि से ऐसा कहा जा सकता है।" १. कर्मवाद से भावांश ग्रहण, पृ. १८६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004243
Book TitleKarm Vignan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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