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कर्मफल : वैयक्तिक या सामूहिक ? २८९ कर्म एक का : फलभोग समूह को : क्यों और कैसे?
इसलिए यह कहना कर्मसिद्धान्त के विपरीत नहीं होगा कि जो प्रत्यक्ष रूप से मुख्यतया कर्म करता है, केवल वही उसका फल न भोगकर उसका परिवार भी और कभी-कभी उसका धर्मसंघ, जाति या राष्ट्र भी उसका फल भोगता है। एक व्यक्ति परिवार में धर्माचरण करता है, उसकी प्रशंसा, प्रसिद्धि, विश्वसनीयता होने से सारे परिवार की प्रशंसा, प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता होती है।
परन्तु कभी-कभी यह कहावत भी चरितार्थ हो जाती है-“एक सड़ी मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है।" परिवार में कोई नामी चोर, डाकू या हत्यारा बन जाता है-तो सारा परिवार बदनाम हो जाता है। सारे परिवार को उसके काले कारनामों का कुफल थोड़े-बहुत अंशों में भोगना पड़ता है। क्योंकि परिवार वाले उसकी कमाई का उपभोग करते हैं। पली तो करती ही है। परिवार के समझदार या बुजुर्ग सदस्य उसके कुकर्मों का समर्थन भले ही न करते हों, परन्तु साथ में रहते हैं, इसलिए संवासानुमति तो होती ही है। आन्तरिक रूप से उसकी कमाई में साझेदारी तथा उसकी लाई हुई वस्तुओं का उपयोग करने से परोक्ष रूप में समर्थन अनुमोदन हो ही जाता है।
एक व्यक्ति को किसी अच्छे कार्य के लिए पुरस्कार मिलता है तो सारे परिवार को उसका फल मिलता है। सारा परिवार उसका समर्थन करता है। अतः शुभ कर्म का भी समग्र परिवार फलभागी बनता है। महात्मागांधी ने भारत को स्वराज्य दिलाने के लिए सत्कर्म किया। उसमें अनेक व्यक्तियों एवं कार्यकर्ताओं का सहयोग था। जब सारा राष्ट्र स्वतंत्र हो गया तो राष्ट्रीय स्वतंत्रता का फल राष्ट्र के सभी लोगों को यत्किंचित रूप में मिला ही है। अतः यदि एक व्यक्ति अहिंसादि-धर्माचरण करके समाज या राष्ट्र को उन्नति के पथ पर ले जाता है तो उसका फल सारे समाज और राष्ट्र को भी मिलता है।
भगवान् महावीर तथा तथागत बुद्ध आदि ने जो धर्म-संध की रचना-स्थापना की। उसका फल संघ के सभी सदस्यों को एक या दूसरे रूप में मिला। लाखों साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका संघ के निमित्त से साधना करके कर्मों से मुक्त हो गए, लाखों साधक-साधिका, उपासक-उपासिकाएँ देवगति अथवा मनुष्यगति में पहुंची। इतिहास इस प्रकार की घटनाओं से भरा पड़ा है।
एक शासक अपनी राज्यवृद्धि की लिप्सा से युद्ध करता है, तो सारा राज्य बरबाद हो जाता है। समूचा राष्ट्र कभी-कभी अनेक कठिनाइयों में फंस जाता है। पाकिस्तान की साम्राज्यलिप्सा ने, बंगलादेश नहीं बना, उससे पूर्व वहाँ के लाखों निदोष महिलाओं, बुद्धिशाली लोगों एवं नागरिकों को बेरहमी से मौत के घाट उतार डाला। उस समय का समग्र पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान में बंगलादेश) उस युद्ध की ज्वाला में झुलस
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