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कर्मफल : वैयक्तिक या सामूहिक ? २८३
परन्तु उसमें कोई प्रेरणा देने वाला उस शुभ या अशुभ कर्म को कराने वाला होता है, कोई अनुमोदक या समर्थक होता है। कोई उसके कार्य के प्रति आन्तरिक सहानुभूति रखता है, अथवा साथ में - एक ही घर या संस्था में रहता है, उसकी संवासानुमति होती है। उस अशुभ या शुभ कार्य से निष्पन्न अर्थ, भौतिक सुख-सुविधा या अन्य प्राप्त वस्तुओं का उपभोग करता है। ये और इस प्रकार के तथाकथित समूह से सम्बद्ध सभी स्त्री-पुरुष, बच्चे आदि एक या दूसरे रूप में उस शुभ या अशुभ कर्मबन्ध में हिस्सेदार होते हैं, इसलिए ऐसी स्थिति में उस समूह से सम्बद्ध लोगों में से जैसा - जैसा जिसका तीव्र, मन्द या मध्यम शुभाशुभ कर्मबन्ध होता है, तदनुसार उसे वैसा शुभाशुभ कर्मफल मिलता है।
सामूहिकरूप से बद्ध कर्म का सामूहिक रूप से फल : एक दृष्टान्त
इसे स्पष्ट रूप से समझने के लिए एक व्यावहारिक दृष्टान्त ले लें
एक सिनेमा हॉल में हजारों दर्शक बैठे हैं। चित्रपट पर ऐसा क्रूर दृश्य आया, जिसे देखकर अधिकांश दर्शकों के मन में भय का भाव आया, अथवा दृश्यमान व्यक्ति की क्रूरता एवं दुष्टता को देखकर उस पर द्वेषभाव उमड़ पड़ा। फलतः उन सब दर्शकों के एक ही साथ अशुभकर्म का बन्ध हो गया। यद्यपि उन दर्शकों में भी जिस-जिस दर्शक के मन में जैसे-जैसे तीव्र, मन्द या मध्यम द्वेषभाव उत्पन्न हुए, तदनुसार उनके अशुभ कर्म का बन्ध भी तीव्र, मन्द या मध्यम होना संभव है।'
वर्षों बाद इसी जन्म में अथवा अगले जन्म में एक साथ सामूहिक रूप से बांधा हुआ वही कर्म उदय में आया। उस समूह पर अकस्मात् आफत आ गई । भूकम्प, बाढ़, महामारी, हैजा, विद्युत्पात, ट्रेन - दुर्घटना, विमान दुर्घटना, अथवा विशाल इमारत का अचानक धराशायी हो जाना इत्यादि निमित्तों ( कारणों) में से कोई भी दुर्घटना उक्त पूर्वकृत सामूहिक अशुभ कर्मबन्ध के फल का निमित्त बनी। और वह दुर्घटना एक साथ उस समूह को कालकवलित कर गई। कितने ही लोग घायल हो गए। जो लोग उक्त पूर्वकृत अशुभ कर्मबन्धन से बच गए थे, वे सही सलामत बच गए। यह सब सामूहिक रूप सेबद्ध अशुभ कर्म का अशुभफल नहीं तो क्या है?
एक साथ पापकर्म का बन्ध कैसे हो जाता है?
एक मानवसमूह एक साथ कैसे पापकर्म का बन्ध कर लेता है, इसे समझने के लिए एक और दृष्टान्त लीजिए
१. देखिये - ' तीव्र-मन्द - ज्ञाताज्ञात-भाव- वीर्याधिकरण-विशेषैस्तद्विशेषः ।”
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- तत्त्वार्थसूत्र अ. ६, सू. ७
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