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कर्मों का फलदाता कौन ? २३९ कर्मफल की व्यवस्था को क्रियान्वित करने के लिए राज्य-व्यवस्था की तरह एक लम्बे चौड़े कार्यालय, बड़े-बड़े रजिस्टरों, मुनीमों-गुमाश्तों, कर्मचारियों अथवा सेवकों आदि की आवश्यकता पड़ेगी। वीतराग, कर्ममुक्त और अनन्त आध्यात्मिक ऐश्वर्य-सम्पन्न कृतकृत्य परमात्मा को इन सब प्रपंचों में पड़ने की आवश्यकता ही क्या है ? यदि वह वीतराग होकर भी ऐसा करता है तो उसका वीतराग विशेषण सार्थक कैसे होगा? वह तो संसारी जीवों से भी अधिक प्रपंची और घोर संसारी हो जाएगा।' ईश्वर सीधा कर्मफल नहीं देता, उसकी प्रेरणा से दूसरे जीव देते हैं __यदि यह कहा जाए कि किसी जीव को दूसरे जीवों द्वारा अथवा परस्पर एक दूसरे को सुख-दुःख मिलता है, परन्तु मिलता तो ईश्वर की प्रेरणा से ही है। क्योंकि कर्म का फल तो सुख या दुःख के रूप में आखिरकार ईश्वर ही देता है। ऐसी स्थिति में, जबकि ईश्वर स्वयं सीधा कर्मफल नहीं देता, किन्तु उसकी प्रेरणा या आज्ञा से ही तो जीव शुभाशुभ कर्म करता है, तब फिर हत्यारे, चोर, डाक, व्यभिचारी, ठग, असत्यभाषी, अन्यायी-अत्याचारी या बलात्कार करने वाले या किसी को सताने वाले किसी भी व्यक्ति को अपराधी नहीं ठहराया जाना चाहिए, क्योंकि ये सब कुकृत्य ईश्वर की प्रेरणा से ही होते हैं। अपराध के अभाव में उन व्यक्तियों को कर्मफल के रूप में दण्ड देने का अधिकार भी ईश्वर को नहीं है। ईश्वर को भाग्य-विधाता मानने पर दोषापत्ति ___ ईश्वरकर्तृत्ववादी जब यह स्वीकार करते हैं कि ईश्वर समस्त जीवों का भाग्य-विधाता तथा कर्मफलदाता है, तब यह भी मानना पड़ेगा कि मानव के जीवन में सभ्यता और संस्कृति के विरुद्ध जितनी भी बुरी प्रवृत्तियाँ या अप्रशस्त क्रियाएँ हैं, उन सबका प्रेरक भी ईश्वर है। इस अपेक्षा से उन सब कुकर्मों का दायित्व भी ईश्वर पर आ जाता है। यदि मनुष्य के भाग्य की रचना परमात्मा करता है; तो यह भी मानना पड़ेगा कि मनुष्य का जैसा भाग्य परमात्मा ने बना दिया है, तदनुसार ही वह शुभ-अशुभ कर्म करता है। उसका फल उसे नहीं मिलना चाहिए। इस दृष्टि से हत्या, लूटपाट, चोरी आदि पापकर्म करने वाले किसी भी व्यक्ति को अपराधी या दोषी नहीं ठहराया जा सकता। क्योंकि इन व्यक्तियों के द्वारा ईश्वर उन प्राणियों को उनके पूर्वकृत कर्मों का फल भुगता रहा है। .. जैसे-राजा जिन पुलिस आदि व्यक्तियों द्वारा अपराधियों को दण्ड दिलाता है, वे अपराधी या दोषी नहीं माने जाते; क्योंकि वे तो सिर्फ राजा की आज्ञा का पालन कर रहे
१. . कर्मवाद : एक अध्ययन, से भावांश ग्रहण , पृ. ७0
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