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कर्म का कर्ता कौन, फलभोक्ता कौन ? २१९
कर्म का कर्ता होते हुए भी आत्मा कर्मरूप नहीं हो जाता
यद्यपि आत्मा कर्म का कर्ता और फलभोक्ता है, तथापि वह कर्मरूप नहीं हो जाता। इस विषय में आचार्य कुन्दकुन्द कहते हैं- जैसे ( सुनार आदि) शिल्पकार आभूषण आदि के निर्माण का कार्य करता है, तथा वह स्वयं आभूषणादिरूप नहीं हो जाता; उसी प्रकार यह जीव भी कर्म करता (बांधता) हुआ भी कर्मरूप नहीं हो जाता । अर्थात्-अपने चैतन्यस्वभाव को छोड़ कर कर्मरूप जड़रूप नहीं हो जाता। आशय यह है कि जिस प्रकार स्वर्णकार आभूषण के निर्माण में निमित्त कारण है। अतः वह अपने स्वरूप से च्युत नहीं होता और निमित्त कारण भी बनता है। इसी प्रकार जीव (आत्मा) भी अपने स्वरूप से च्युत नहीं होता और कर्मों के कर्तृत्व (बन्धन) में निमित्त रूप भी बन जाता है। यहाँ निमित्त - नैमित्तिक भाव की अपेक्षा से आत्मा में कर्तृत्व, भोक्तृत्व एवं भोग्यत्व का व्यवहार उपयुक्त माना है। उपादान-उपादेयभाव यहाँ घटित नहीं होता । '
आत्मा स्वयं ही कर्मकर्ता और स्वयं ही फलभोक्ता
इस दृष्टि से उत्तराध्ययन सूत्र में कहा गया है - आत्मा ही सुखों और दुःखों का कर्ता है और वही विकर्ता (कर्म-फलभोक्ता या कर्मक्षयकर्त्ता ) है | चाणक्यनीति में कहा गया हैहै - आत्मा स्वयं ही कर्म करता है और उस कर्म का फल भी स्वयमेव भोगता है। स्वयं ही कर्मानुसार संसार में परिभ्रमण करता है और स्वयं कर्म से मुक्त होता है। महाभारत में कहा गया है - यह तो सबका सामान्य अनुभव है कि कुम्भकार मिट्टी के पिण्ड से जो-जो बर्तन आदि बनाना चाहता है वही वही बनाता है। इसी प्रकार मनुष्य स्वेच्छा से कृत कर्म का फल प्राप्त करता है। जिस प्रकार छाया और धूप निरन्तर एक दूसरे के साथ सम्बद्ध रहते हैं। इसी प्रकार कर्ता और कर्मफल अपने द्वारा किये गए कर्मों से सम्बद्ध रहते हैं।””
१. जह सिप्पिओ उ कम्पं कुव्वइ, ण य सो उ तम्मओ हो ।
तह जीवो वि य कम्मं कुव्वदि ण तम्मओ होइ || २. (क) अप्पा कत्ता विकत्ता य दुहाण य सुहाण य। (ख) स्वयं कर्मकरोत्यात्मा, स्वयं तत्फलमश्नुते ।
स्वयं परिभ्रमति संसारे स्वयं तस्माद् विमुच्यते । (ग) यथा मृत्पिण्डतः कर्ता कुरुते यद्यदिच्छति । एवमात्मकृतं कर्म मानवः प्रतिपद्यते ॥ यथा छायाऽऽतपौ नित्यं सुसम्बद्धौ परस्परम् । तथा कर्म च कर्ता च सम्बद्धावात्मकर्मभिः॥
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- समयसार ३४९
- उत्तराध्ययन २०/३७
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- चाणक्यनीति
- दक्षस्मृति
- महाभारत अनु. पर्व अ. १, श्लोक ७४
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