SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 208
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८८ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : उपयोगिता, महत्ता और विशेषता (४) परिवर्तन। समाजवाद का मानना है, समाज की वर्तमान कुव्यवस्था को बदलने के लिए अर्थव्यवस्था बदलनी अनिवार्य है। समाजवाद का पूर्व रूप है-मार्क्सवाद (कम्युनिज्म)। इसके जन्मदाता कार्लमार्क्स का मत था-समाज अर्थ के आधार पर ही अच्छा-बुरा बनता है। आर्थिक समानता समाज की रीढ़ है। अर्थव्यवस्था के आधार पर ही समाज का निर्माण होता है। कतिपय भारतीय नीतिशास्त्री भी इस सिद्धान्त को मानते थे। उनमें एक थेभारतीय राजनीति में वरिष्ठ महामात्य कौटिल्य, जिन्होंने “कौटिल्य अर्थशास्त्र" रचा. था। कौटिल्य के मतानुसार धर्म, अर्थ, और काम इन तीनों वर्गों (पुरुषार्थों) में अर्थ ही मुख्य है। अर्थ है तो धर्म (पुण्यकार्य) भी होगा और काम सेवन (भोगोपभोग) भी अर्य होने पर ही सम्भव है।' हम इस सन्दर्भ में पूर्व पृष्ठों में भारतीय समाज-व्यवस्था का चित्रण कर आए हैं कि कई दार्शनिक अर्थ और काम को, कोई केवल अर्थ को, और कोई केवल काम पुरुषार्थ को प्रधानता देते थे। कतिपय दार्शनिक धर्म पुरुषार्थ को प्रधानता देते थे। अर्थ-काम को धर्म के अंकुश में मानते थे। परन्तु उनकी धर्म की व्याख्या नैतिकतामूलक थी, नीति-न्याय को ही धर्म माना जाता था। राजनीति, अर्थनीति और धर्मनीति, सभी नैतिकता के नियमों के अनुरूप थी, जिसे धर्म का रूप दिया गया था। ___ अतः आधुनिक समाजवाद का दूसरा पक्ष है-आर्थिक। अर्थव्यवस्था में परिवर्तन लाना भी उसका एक उद्देश्य हो गया। समाज में परिवर्तन अथवा समाज का नैतिक विकास अर्थव्यवस्था में परिवर्तन पर निर्भर है, ऐसा वर्तमान समाजवाद के उन्नायकों ने माना। समाज में अभाव-पीड़ित व्यक्ति रोटी-रोजी के अभाव में अनैतिकता पर उतारू होता है। चोरी, लूट, तस्करी, धोखेबाजी, मुनाफाखोरी, बेईमानी आदि अर्थदूषण तभी पनपते हैं, जब मनुष्य गरीबी की चक्की में पिसता है। गरीब और अमीर का भेदभाव भी अमीर के प्रति गरीब के मन में ईर्ष्या पैदा करता है, और वह भी येन-केन-प्रकारेण धनोपार्जन करने में जुट जाता है। अर्थव्यवस्था में सुधार न होने से गरीबों एवं श्रमजीवियों का शोषण भी होता है, वर्ग संघर्ष भी। ___ आधुनिक समाजवाद ने आर्थिक समानता लाने अथवा गरीबी-अमीरी का भेद मिटाने के लिए यह नारा दिया कि “सम्पत्ति समाज की है।" उस पर व्यक्ति का स्वामित्व नहीं रहना चाहिए। जितना भी उत्पादन, वितरण और विनिमय हो, उस पर स्वामित्व समग्र समाज का होना चाहिए। इस प्रकार आधुनिक समाजवाद (जिसे मार्क्सवाद, १. वही, पृ. ३० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004243
Book TitleKarm Vignan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy