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________________ १८६ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : उपयोगिता, महत्ता और विशेषता (४) दोहराया है। ऊपर-ऊपर से देखने पर ऐसा लगता है कि वर्तमान समाजवाद केवल राजनैतिक और आर्थिक ढांचे को ठीक करने के लिए आया है। किन्तु गहराई से अध्ययन करने पर प्रतीत होता है कि वर्तमान समाजवाद केवल राजनैतिक और आर्थिक सुधार का आन्दोलन ही नहीं है। इसके पीछे भी एक दर्शन है-एक दृष्टि है, व्यवस्थित विचारधारा है। समाजवाद की दृष्टि द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद पर टिकी है। द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद इस विश्व को जड़ (अचेतन) पर आधारित मानता है। उसका कथन है-“विश्व का आधार कोई सचेतन नहीं है।" इस विषय में कर्मवाद और समाजवाद में मतैक्य या सुसंवादिता नहीं है। कर्मवाद आत्मवाद पर आधारित है, वह विश्व को जड़ और चेतन दोनों पर आधारित मानता है। कर्मवाद केवल भौतिक पदार्थों के सहारे कर्म-सिद्धान्त का विश्लेषण नहीं करता। वह मुख्यतया चेतन (आत्मा) को लेकर ही कर्म का विश्लेषण करता है। जिन दार्शनिकों ने ' कर्म का अस्तित्व माना है, उनमें से एक भी दर्शन ऐसा नहीं है, जो कर्म को तो स्वीकार करता हो, किन्तु चेतन (आत्म) तत्त्व को न मानता हो। आत्मा (चेतन) को माने बिना केवल कर्म का क्या मूल्य है, उससे क्या प्रयोजन सिद्ध होगा, क्योंकि कर्म जड़तत्त्व को तो लगते नहीं, बंधते नहीं, न ही जड़तत्त्वं कर्म से मुक्त होना या कर्म का निरोध करना जान सकता है। जो द्वैतवादी दार्शनिक हैं, उन्होंने कर्म का स्वीकार करने के साथ चेतन-अचेतन इस तत्त्वद्वय को माना, जबकि अद्वैतवादी दार्शनिकों ने कर्म के स्वीकार के साथ केवल चेतन तत्त्व को माना है। केवल अचेतन (जड़ाद्वैतवाद) को जगत् का आधार मानने वाला चार्वाक आदि दर्शन कर्म-सिद्धान्त को नहीं मानता। ___ अतः जैन कर्मवाद के दार्शनिक पक्ष के साथ वर्तमान समाजवाद का बिलकुल मेल नहीं खाता। अचेतन को जगत् का आधार मानने वाला तथाकथित समाजवाद केवल वर्तमान को ही मानता है। जड़ के सम्बन्ध में न तो पूर्वजीवन का विचार किया जाता है और न हीं भावी जीवन का। उसका केवल वर्तमान ही होता है। न तो भूतकाल और न ही भविष्य। जबकि जैन कर्मवाद, वर्तमान के साथ भूत और भविष्य दोनों को भी जीवों के पूर्वजन्म और पुनर्जन्म की अपेक्षा से मानता है। कर्मवाद तो कर्म की अनादिकालीन श्रृंखला को मानता है, अतः उसके साथ भूतकाल तो अनिवार्यतः जुड़ा रहता है। यदि कोई अतीत नही है तो कर्म को मानने की जरूरत भी नहीं है। और यदि कोई भविष्य भी नहीं है तो शुभ कर्म में या कर्मनिरोध व कर्म के आंशिक क्षय (निर्जरा) में कोई प्रवृत्त होगा भी क्यों? परन्तु कर्मवाद के साथ तो तीनों काल परस्पर अनुस्यूत हैं। ___भारतीय दर्शनों में चार्वाक ही ऐसा दर्शन था, जो वर्तमान को ही स्वीकारता था। वह पुनर्जन्म और कर्मवाद को नहीं मानता था। वह केवल वर्तमान जीवन को वैषयिक सुख Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004243
Book TitleKarm Vignan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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