________________
१५८ कर्म-विज्ञान : भाग - २ : उपयोगिता, महत्ता और विशेषता (४)
डरकर चलने वाले (आवश्यक एवं सहज तथा शुभ कर्म न करने वाले) व्यक्ति अप कर्मों में वृद्धि ही करते हैं। क्योंकि उनका चित्त मलिन होता है, वे शुद्ध मन से कोई नहीं करते।""
कर्म सिद्धान्त से अनभिज्ञ ही कर्म के विषय में भ्रान्त एवं भयभीत
कर्मवाद के रहस्य से अविज्ञात व्यक्ति कर्म से इसलिए भी डरते रहते हैं कि बहुत बार कर्म की शक्ति के बारे में अनेक बातें सुनते हैं। प्रायः कर्मवाद के मर्म से अव्यक्ति इस धारणा से ग्रस्त हो जाता है कि मनुष्य का सारा का सारा जीवन, व्यक्ति एवं वर्तमान अतीत में बद्धकर्मों से बँधा हुआ है। भूतकाल में उसने जो कर्म बाँधे थे, जाती के अनुसार उसका जीवन बना है। वर्तमान में आने वाले संकट, दुःख, विघ्न आदि पूर्वबद्ध कर्म के फल हैं, इन्हें कोई बदल नहीं सकता, इनको आने से रोक नहीं सकता इनका फल भोगे बिना कोई चारा नहीं है। इस प्रकार की एकपक्षीय एकांगी धारणा आम आदमी की सहज ही बन जाती है। वह अतीत की पकड़ को ढीली करने, छोड़ने और पूर्वबद्ध कर्मों की प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश को बदलने में स्वयं को असमर्थ समझता है। वह ऐसा सोच भी नहीं पाता कि पूर्वबद्ध कर्मों को बदला या उदय में आने से पूर्व ही फल भोग कर क्षय किया जा सकता है।
कर्म की शक्ति के विषय में भ्रान्त धारणा भी निराशावाद की जननी
इस भ्रान्त धारणा के बनने में एक कारण और भी है। वह कर्म के विषय में प्रायः यही सुनता आ रहा था कि कर्म किसी को भी छोड़ता नहीं, चाहे वह आकाक्ष में उड़कर चला जाए, चाहे पाताल में घुस जाए, अथवा एकान्त स्थान में जाकर छिप जाए। बड़े-बड़े तीर्थंकरों, चक्रवर्तियों, युगपुरुषों, पहलवानों और योद्धाओं को भी कर्म छोड़ता नहीं, सामान्य आदमी तो किस बाग की मूली है ? आदि तीर्थंकर भगवान् ऋषभदेव को बारह महीने से कुछ अधिक समय तक आहार नहीं मिला; यह उनके पूर्वकृत कर्म का ही प्रभाव था। मर्यादा पुरुषोत्तम राम को राज्याभिषेक के बदले चौदह वर्ष का वनवास का कष्ट भोगना पड़ा, महासती सीता जैसी पवित्र महिला का एक धोबी के कथन पर से श्रीराम द्वारा त्याग करने की घटना, कर्म के महाप्रभाव को उजागर करती है । सनत्कुमार जैसे अद्वितीय रूपवान् चक्रवर्ती का अकस्मात् दुःसाध्य रोगाक्रान्त होना, कर्म की शक्ति का ज्वलन्त उदाहरण है। सत्यवादी हरिश्चन्द्र को चाण्डाल के यहाँ बिक कर श्मशान घाट पर चौकीदारी का कार्य करना भी कर्म की प्रचण्ड शक्ति का नमूना है।
श्रीकृष्ण वासुदेव की इहलीला का जराकुमार के बाण से समाप्त होना, एवं बलदेव द्वारा उनके मृतदेह को छह महीने तक कंधे पर उठाये फिरना भी कर्म की ताकत का 9. “कर्मभीताः कर्मण्येव वर्द्धयन्ति, चित्तं न दूषयितव्यं । " - सूत्रकृतांग १२ तथा १/२/२ २. कर्मवाद पृ. १२२
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org