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________________ कर्मवादः निराशावाद या पुरुषार्थयुक्त आशावाद? कर्मवाद : संसार-समुद्र में प्रकाशस्तम्भ समुद्र में जहाँ चट्टानें होती हैं, उनसे टकरा कर जहाजों के चूर-चूर होने का खतरा . रहता है, अथवा जहाँ आमने-सामने से जहाजों के आने-जाने का रास्ता हो, या जहाँ आंधी, वर्षा, तूफान, कोहरा तथा रात्रि के समय घना अन्धकार हो जाने से जहाज को रास्ता व बंदरगाह न दिखाई पड़ता हो, वहाँ एक बहुत ऊँचा प्रकाशस्तम्भ लगा रहता है, जो दूर-दूर तक प्रकाश फैंक कर मार्ग दिखाता रहता है। दूर-दूर से जहाज आते हैं और खतरे से बच कर सही-सलामत पार हो जाते हैं। ___ इसी प्रकार संसार-समुद्र में भी कर्मवाद का सिद्धान्त प्रकाश-स्तम्भ के समान है; जो संसार-समुद्र की यात्रा करने वाले जीवरूपी नाविकों को अपनी जीवन-नौका सहीसलामत पार करने हेतु प्रथम गुणस्थान से लेकर चौदहवें गुणस्थान तक के उनके जीवन यात्रा मार्ग को प्रारम्भ से अन्त तक प्रकाशित करता रहता है और यह भी बताता रहता है कि यहाँ क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, मोह, मद, मत्सर, काम, भय आदि की चट्टानें हैं, इनसे टकरा जाओगे तो तुम्हारी जीवन-नैया यहीं सछिद्र होकर डूब जाएगी, आगे नहीं बढ़ पाएगी। यहाँ मोह का भँवरजाल है, इससे बचना। और यहँ संवर और निर्जरारूप धर्म का अथवा सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र-तप का निरापद मार्ग है। इस रास्ते से तुम्हारी जीवन-नौका सकुशल संसार-समुद्र को पार कर सकेगी। ___ इस प्रकार कर्मवाद संसार-समुद्र की यात्रा करने वाले जीव-नाविकों के लिए आशास्पद, विश्वस्त, सहायक एवं मार्गदर्शक प्रकाशस्तम्भ है।' अज्ञानी दिङ्मूढ व्यक्ति प्रकाशस्तम्भ से लाभ नहीं उठा पाते परन्तु अज्ञानी, दिङ्मूढ और विविध भ्रान्तियों के शिकार जीव-नाविक अपने १. तुलना करें- सरीरमाहुनावत्ति, जीवो वुच्चइ नाविओ। संसारो अण्णवो वुत्तो, जं तरंति महेसिणो॥ -उत्तराध्ययन २३/७३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004243
Book TitleKarm Vignan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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