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जैन कर्म-विज्ञान : जीवन-परिवर्तन का विज्ञान १५३
भूतकालीन तथा वर्तमानकालीन जीवन का पता लग जाता है। जैसे कि समुद्रपाल ने मुनि बनने से पूर्व वध्यभूमि की ओर ले जाते हुए एक चोर को देखकर उसके पूर्वकृत अमुक अशुभ कर्मों का पता लगा लिया था।
प्राचीन जैन कथाओं में तो यत्र-तत्र उल्लेख है कि अतीन्द्रिय ज्ञानी मुनिवरों के द्वारा जिज्ञासु एवं संकट में पड़ा हुआ व्यक्ति अपने भूत भविष्य के विषय में पूछता है, और वे उसके जीवन परिवर्तन की कहानी, किन कर्मों के कारण, किन लेश्या, योग आदि की प्रवृत्तियों-वृत्तियों के कारण हुई थीं, उनकी ओर ध्यान खींचते थे। इस प्रकार कर्मविज्ञान के माध्यम से उन जिज्ञासु व्यक्तियों का जीवन सहसा उच्च भूमिका की ओर प्रस्थान करने के लिए उद्यत-उत्थित हो जाता था। कई-कई व्यक्ति तो कर्मविज्ञान का सन्देश सुनकर कर्म से अकर्म की ओर प्रस्थान करने के लिए तीव्रता से तत्पर हो जाते थे। ___ व्यक्तित्व में यह परिवर्तन प्रायः कर्मविज्ञान के सन्देश से होता है, किन्तु आन्तरिक इच्छा से भी होता है, और परोपदेश या शास्त्रों के उपदेश से भी होता है। ___ व्यक्ति के जीवन में यह जो परिवर्तन होता है, वह मनोवैज्ञानिकों की दृष्टि में तो अवचेतन मन में होता है, चेतन मन के स्तर पर नहीं। परिवर्तन का मूल स्रोत हैअवचेतन मन। अवचेतन मन में जब यह बात पहुँच जाती है, कि क्रोधादि के कारण भयंकर कर्मबन्धन होंगे और दुर्गति आदि दुःखदायक परिणाम भी भोगना पड़ेगा, तब अन्तर्मन में बसी हई बात सहसा परिवर्तन को बाध्य कर देती है, चेतन मन को। तब व्यक्ति के व्यक्तित्व में परिवर्तन आता है। ___ कर्मशास्त्र की भाषा में कहें तो प्राणी के सारे व्यवहार का निर्धारक अथवा ज्ञापक तत्त्व है-कार्मणशरीर। कार्मण शरीर को प्रभावित किया जाए तो व्यक्ति के जीवन में परिवर्तन शीघ्र घटित हो जाता है, किन्तु स्थूल शरीर या तैजस शरीर को प्रभावित करने से परिवर्तन की संभावना नहीं रहती है। ये दोनों ही व्यवहार के निर्धारक नहीं हैं। व्यक्ति ध्यान, कायोत्सर्ग, मौन आदि निवृत्तिप्रधान प्रक्रियाओं द्वारा कर्मविज्ञान के माध्यम से अपने और दूसरों के जीवन में परिवर्तन ला सकता है। यद्यपि दूसरे व्यक्ति में परिवर्तन होगा, उसी की अन्तरिच्छा से, परन्तु प्रेरक या मार्गदर्शक दूसरा कर्म-मर्मज्ञ व्यक्ति बन सकता है।
निवृत्ति काल में शुद्ध चेतना का अनुभव होता है। उस समय संलग्न कर्मों को प्रथक करने की तीव्रता भी जागती है, कर्मशरीर पर उसका प्रभाव पड़ता है। पुरानी वृत्ति-प्रवृत्तियाँ धीरे-धीरे खिसकने लगती हैं। नई आने नहीं पातीं। ___ इसलिए यह निःसन्देह कहा जा सकता है कि, जैन कर्मविज्ञान जीवन-परिवर्तन का विज्ञान है । वह प्राणिमात्र के जीवन की हलचल को बता देता है, उसके भूत, भविष्य और वर्तमान की झाँकी भी करा सकने में वह समर्थ है।
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