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(११) महाराज का स्मरण करता हूँ जिनके मंगलमय आशीर्वाद से मैं अपनी अध्यात्मसाधना में यशस्वी हो रहा हूँ।
मेरे लेखन में पूज्य उपाध्याय गुरुदेव श्री पुष्कर मुनि जी महाराज का आशीर्वाद उसी प्रकार सहायक रहा है जैसे दीपक को ज्योति पुंज के रूप में प्रकाशित होने में स्नेह (तेल)। उनका स्नेह, वात्सल्य, करुणा मेरे जीवन की चिरस्थायी निधि है। . परम स्नेही सन्तमानस महामनीषी मुनि श्री नेमीचन्द जी महाराज का सौजन्य पूर्ण सहयोग भी मेरे लिए अविस्मरणीय है। उन्होंने मेरे द्वारा लिखित निबन्धों को बड़ी सूक्ष्म दृष्टि से संशोधित/सम्पादित करके स्नेह पूर्ण समर्पण और आत्मीय भाव प्रगट किया है। यह मेरे लिए चिरस्मरणीय है। .. प्रतिभामूर्ति ज्येष्ठ भगिनी पुष्पवती जी महाराज की सतत प्रेरणा से मैं (कर्मविज्ञान) प्रस्तुत ग्रन्थ के लेखन में गतिशील रहा हूँ। अतः इनका स्मरण सहज ही हो जाता है। ____ मैं उन सभी सन्तों, मनीषियों, विद्वानों तथा ज्ञात-अज्ञात कृतिकारों एवं सहयोगियों के प्रति आभारी हूँ, जिनके सहकार से मैं इस ग्रन्थ को रोचक एवं आकर्षक रूप प्रदान करने में सक्षम हुआ। __ इस अवसर पर परमस्नेही श्रीचन्द जी सुराना "सरस" को भी नहीं भुला सकता, जिनके अथक प्रयास से ग्रन्थ का त्रुटि रहित मुद्रण और आकर्षक साज-सज्जा संभव हुई। वे अत्यधिक धन्यवाद के पात्र हैं। ... परम उत्साही सुश्रावक डा. चम्पालाल जी देसरड़ा को भी विस्मृत नहीं हो
सकता, जिन्होंने कर्म विज्ञान के द्वितीय भाग के प्रकाशन में अपना उदार आर्थिक सहयोग प्रदान किया।
-उपाचार्य देवेन्द्र मुनि
जैन विकास केन्द्र पीपाड सिटी
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