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________________ १०४ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : उपयोगिता, महत्ता और विशेषता (४) दूसरा मुझे किस दृष्टि से देखता है और मैं भी अपने आपको (वर्तमान में) किस रूप में देख रहा हूँ तथा (वर्तमान में मेरे जीवन में) कौन की स्खलना हो रही है, जिसे मैं विवर्जित नहीं कर (छोड़ नहीं) रहा हूँ। इस प्रकार सम्यक् अनुप्रेक्षा करता हुआ साधक वर्तमान स्खलना को भविष्य के साथ अनुबद्ध न करे। इन तीनों की साधना यथासमय जागरूक होकर करे परन्तु यह ध्यान रहे कि प्रतिक्रमण या सम्प्रेक्षण हेतु साधक के लिए कई समय नियत हैं, उन्हीं समयों में इन्हें करना है। वर्तमान में जीने के उपाय और अपाय __इसके सिवाय भी अतीत की पकड़ से मुक्त होकर वर्तमान में जीने के और उपाय हैं।' नीतिशास्त्र उपाय के साथ अपाय का भी चिन्तन करने के लिए कहता है। अपाय अर्थात्-विज या अहितकर दोष या हानि। उन्हें हटाये बिना उपाय भी सफल नहीं हो.. सकता। जैसे दशवैकालिक सूत्र में शास्त्रकार ने पहले चारों कषायों से होने वाले अपायों को बताया कि “क्रोध प्रीति का नाश करता है, मान विनय नष्ट कर देता है,माया मित्रता का विनाश करती है और लोभ तो सर्वविनाशक है।" इसके पश्चात उन्होंने इन चारों के निवारण का उपाय भी बतलाया “उपशम (शान्ति) से क्रोध को नष्ट करे, मृदुता से अभिमान पर विजय प्राप्त करे, ऋजुता-सरलता से माया पर विजयी बने और संतोष से लोभ को जीते।'' "क्रोध और मान का निग्रह न करने पर तथा माया और लोभ को बढ़ने देने पर ये चारों कषाय पुनर्जन्म के मूल को सींचते हैं। वर्तमान को ही दृढ़ता से पकड़ो : एक उपाय इसी प्रकार अतीतकालीन स्मृतियों से होने वाले अपायों को मिटाने के लिए अनेक उपाय ज्ञानी पुरुषों ने बताए हैं, उनमें से एक उपाय है- वर्तमान को दृढ़ता से पकड़ना। १. दशवकालिक विवित्त चरिया चूलिका २ गा. १३ २. 'उपायं चिन्तयन् प्राज्ञ अपायमपि चिन्तयेत्।। -हितोपदेश ३.. (क) "कोहो पीइंपणासेइ, माणो विणयनासणो। माया मित्ताणि नासेइ, लोभो सव्व-विणासणो।" (ख) उवसमेण हणे कोहं, माणं मद्दवया जिणे। मायमज्जवभावेण, लोभं संतोसओ जिणे॥" ___ - दशवकालिक ८/३८-३९ (ग) कोहो य माणो य अणिग्गहीआ, माया लोभो य पवढमाणा। चत्तारि एए कसिणा कसाया, सिंचंति मूलाइं पुणब्भवस्स॥ -वही.अ. ८/४0 गा. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004243
Book TitleKarm Vignan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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