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________________ ९८ कर्म-विज्ञान : भाग-२ : उपयोगिता, महत्ता और विशेषता (४) कर छठी नरक में जाओगे।' यह है वर्तमान को देखकर भविष्य का यथार्थ आकलन-कथन। कर्मसिद्धान्त से अनुस्यूत श्रेणिकनृपपुत्र मेघकुमार का अतीत, वर्तमान और भविष्य ___ मगध सम्राट श्रेणिक का पुत्र मेघकुमार अत्यन्त वैराग्यभाव से भगवान् महावीर के पास दीक्षित हुआ था। किन्तु दीक्षा के दिन ही रात्रि को लघुशंका-परिष्ठापनादि के निमित्त धर्मस्थान से बाहर जाते समय असावधानीवश अन्य साधुओं के चरणाघात के कारण नवदीक्षित मेघमुनि उद्विग्न एवं अधीर हो उठे। स्वयं को अपमानित एवं मर्माहत समझकर प्रातः प्रतिक्रमण के समय भगवान् महावीर के पास पहुंचे और बोले"भगवन्! ये लीजिए आपके धर्मोपकरण! मैं साधुवेष को छोड़कर घर जा रहा हूँ।" : भगवान महावीर ने कहा-“मेघ! इतने से कष्ट से तुम घबरा गए, इतने अधीर हो गए? तुम्हें याद नहीं है, पूर्वजन्म में तुम हाथियों के यूथपति थे और उस वन में दावाग्नि लग जाने पर तुम्हारे मन में एक सुन्दर पुण्यजनक विचार उत्पन्न हुआ कि मैं समर्थ हूँ तो क्यों नहीं, एक विशाल भूमण्डल साफ करके तैयार करूँ, जिसमें दावाग्नि से पीड़ित भयभीत पशु-पक्षी आकर शरण लें और अग्नि शान्त हो जाने पर अपने-अपने मनोनीत स्थान में चले जाएँ। तुमने उस सुविचार को कार्यरूप में परिणत किया। इतना ही नहीं, उस मण्डल में खुजलाने के लिए उठाये हुए तुम्हारे पैर के नीचे खाली जगह देखकर एक खरगोश आकर बैठ गया। तुम्हें इसका भान होने पर तुमने २० पहर तक पैर ऊँचा उठाए रखा। इस स्थिति में तथा वापस पैर रखते समय तुम्हें अपार एवं असह्य कष्ट हुआ था, किन्तु तुमने एक प्राणी पर अनुकम्पा करने एवं अभयदान देने हेतु उसे शुभभावपूर्वक सहन किया। उसी शुभकर्म के फलस्वरूप तुम्हें मगधनरेश के यहाँ जन्म मिला। उत्तम संस्कार मिले। अप्रतिलब्ध सम्यक्त्वरत्न भी प्राप्त हुआ और इस जन्म में तुमने उस पुण्यपूँजी में वृद्धि करने तथा आध्यात्मिक विकास के चरम शिखर को पाने के लिए संयम ग्रहण किया। अब तुम थोड़े से कष्ट से घबराकर पीछे हट रहे हो, इसे छोड़कर भागने के लिए उद्यत हुए हो! जरा सोचो-तुम्हें अपने अतीत के उज्ज्वल पुण्यकर्मवश वर्तमान में मानव जीवन, उत्तम कुल, उन्नत संस्कार आदि मिले। तुम्हारी वर्तमान अवस्था उसी शुभ अतीत की देन है। परन्तु यदि तुम वर्तमान जीवन को तप, त्याग, संयम और संवर से सुसज्जित नहीं करोगे तो सोच लो- 'तुम्हारा भविष्य कैसा होगा?' १. 'श्रमण भगवान् महावीर' में भ. महावीर और कोणिक का संवाद Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004243
Book TitleKarm Vignan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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