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सामाजिक सन्दर्भ में-उपयोगिता के प्रति आक्षेप और समाधान ८७
__ भगवान् महावीर ने हिंसाजनित पापकर्मबन्ध से बचने के लिए यह आत्मसमानता की भावना और व्यवहारदृष्टि प्रतिपादित की है। इससे भी आगे बढ़कर उन्होंने कहा"सब प्राणियों को अपना आयुष्य प्रिय है, सुख सबको साताकारी-अनुकूल है, और दुःख सबको प्रतिकूल । वध सबको अप्रिय है, जीवन सबको प्रिय। सभी प्राणी जीने की कामना करते हैं। अतः किसी भी प्राणी की हिंसा मत करो।"१ ___ "सभी प्राणियों की न तो अवहेलना करनी चाहिए और न ही निन्दा-चुगली करनी चाहिए।"
"इतना ही नहीं, न तो स्वयं अपनी आशातना (आत्मपीड़ा) करनी चाहिए और न ही दूसरों की।"
"प्रत्येक प्राणी के सुख-दुःख का ध्यान करो, निरीक्षण करो-क्योंकि सभी प्राणियों, भूतों, जीवों और सत्त्वों को असाता (दुःख) देना तथा अशान्ति पैदा करना महाभयंकर है, दुःखोत्पत्ति (घोर कर्मबन्ध) का कारण है।"
"जो अपने अन्तस्तल को, अपनी सुख-दुःख की भावना को जानता है, वह बाहर को-दूसरे की भावना को भी जानता है। जो दूसरे की भावना को जानता है, वह अन्तःस्तल की भावना को जानता है।" "सुख की भावना दूसरों में भी अपने समान है, इस तुला का अन्वेषण कर।"
भगवान् महावीर ने इन उपदेशों द्वारा आध्यात्मिकता के साथ समाज और समष्टि की सुख-दुःख की, विकास-अविकास की, पीड़ा-अपीड़ा की भावनाओं के साथ तादात्म्य रखने की प्रेरणा की है, ताकि पाप-कर्मों से जीव बच सके। २
१. (क) सब्बे पाणा पियाउया, सुहसाया, दुक्खपडिकूला अप्पियवहा पियजीविणो जीविउकामा, सब्बेसि जीवियं पियं।
-वही, श्रु.१ अ.२, उ.३ (ख) पातिवाएज्ज कंचणं।
-वही श्रु.१ अ.६, उ.१ २. (क) "सव्वे पाणा न हीलिज्जा न निंदिज्जा।"
- वही १/६/१ (ख) "णो अत्ताणं आसाएज्जा, णो परं आसाएज्जा, णो अण्णाई पाणाई, भूयाई, जीवाई, सत्ताई ___ आसाएज्जा।"
-वही १/६/५ (ग) णिज्झाइत्ता, पडिलेहित्ता पत्तेयं परिणिव्वाणं। सव्वेसिं पाणाणं, सब्वेसिं भूयाणं, सव्वेसिं जीवाणं, सव्वेसिं सत्ताणं अस्सायं अपरिनिव्वाणं महन्भयं दुक्खं।"
__-वही, १/१/६ (घ) "जे अज्झत्थं जाणइ से बहिया जाणइ। जे बहिया जाणइ से अज्झत्थं जाणइ, एयं तुलमन्नेसिं।
-आचा.१/१/७
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