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सामाजिक सन्दर्भ में-उपयोगिता के प्रति आक्षेप और समाधान ८५
भागवत पुराण में जड़ भरत का आख्यान आता है कि गण्डकी नदी के किनारे एक मृग शिशु को उसकी माता के मर जाने से तड़फते देख, वे वैष्णव साधु की मर्यादानुसार उसे अपने आश्रम में ले आए। वहाँ उसके खाने-पीने का प्रबन्ध कर दिया। परन्तु इससे आगे बढ़कर वे आसक्तिपूर्वक बार-बार उसे पपोलते, उसे खेलाते, उसकी क्रीड़ा देखकर मन ही मन प्रसन्न होते, आसक्तिपूर्वक उसको गोद में लेते। इस प्रकार की आसक्ति के कारण उनकी ध्यान, धर्मसाधना छूट गई। फलतः वे मरकर उस आसक्ति के कारण मृग
यह आख्यान बताता है कि प्राणिमात्र के प्रति आत्मीयता रखते समय उच्च साधक को रागद्वेषवर्द्धक या तीव्र कषायवर्द्धक प्रवृत्तियों से सदैव दूर रहना चाहिए। अर्थात् उसमें आत्मीयता और तटस्थता का पूरा विवेक होना चाहिए। कर्मविज्ञान के माध्यम से तीर्थंकरों ने इसी तथ्य को समझाया है। गृहस्थ-जीवन में आत्मीयता और तटस्थता का विवेक
गृहस्थ-जीवन में भी आध्यात्मिकता और सामाजिकता का समन्वय करके चलने की बात कही गई है। सदगृहस्थ का कर्तव्य है कि वह प्राणिमात्र के प्रति आत्मीयता एवं मैत्री रखते हुए भी, तथा लोकव्यवहार में अपने परिवार, संघ, राष्ट्र आदि के प्रति कर्तव्य धर्म का पालन करे, किन्तु जहाँ अपने माने हुए, परिवार संघ, राष्ट्र आदि में अन्याय, अत्याचार, अधर्म, पापाचार आदि का दौर चल रहा हो, वहाँ वह उसका समर्थन न करे। हो सके तो समझा-बुझाकर अनिष्टों को दूर करने तथा पापाचरण को मिटाने का प्रयत्न करे। अगर कोई विपरीत वृत्ति का व्यक्ति या समूह उसकी बात न मानता हो तो मध्यस्थ-तटस्थ रहे। आत्मीयता के साथ तटस्थता का विवेक भी
सूत्रकृतांग में जगत् के समस्त प्राणियों के प्रति समभाव एवं आत्मौपम्यभाव रखने वाले व्यक्ति को आत्मीयता के साथ तटस्थता का निर्देश करते हुए कहा गया है-"जगत् को जो समभाव से देखता है, वह न किसी का प्रिय (आसक्ति पूर्ण व्यवहार) करता है, न ही किसी का अप्रिय (द्वेष पूर्ण व्यवहार) करता है।"
इसका स्पष्टीकरण करते हुए आचारांग में बताया गया है कि "अज्ञानी असम्यग्दृष्टि जीव अपने माता-पिता, पुत्र-पुत्री, पुत्रवधू, स्वजन सम्बन्धियों में अत्यधिक आसक्त रहता है। उनके लिए नाना पापकर्म, क्रूरकर्म करके धन कमाता है, साधन जुटाता है, परन्तु उस धन को या तो भागीदार बांट लेते हैं, या चोर उसका हरण कर लेते है, अथवा शासक (सरकार) उसे छीन लेता है, अथवा आग लगने से वह जल जाता है।
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