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कर्मशास्त्र अथवा कर्म विज्ञान ... मन-वचन-काया की ये क्रियाएं, प्रवृत्तियां, शुभ एवं कल्याणकारी, अपने और. दूसरों के हित में भी होती हैं, और अहित में भी। प्राणी को इनके शुभ-अशुभ फलं भी भोगने पड़ते हैं। क्योंकि कोई भी क्रिया निष्फल नहीं होती। क्रिया की प्रतिक्रिया और फिर प्रतिक्रिया की क्रिया-यह प्रक्रिया सतत चलती रहती है।
कर्मशक्ति का भी इसी प्रकार चक्र अनवरत रूप से प्रवृत्तमान रहता है। किस कर्म का, कैसा फल प्राप्त होगा, इस विषय पर अनेक विचारकों और मनीषियों ने गहराई पूर्वक चिन्तन-मनन करके अपने-अपने निष्कर्ष प्रस्तुत किये हैं। तीर्थंकर या सर्वज्ञों ने जहां अपने निर्मल ज्ञानानुभव से इस विषय की अतल गंभीरता उद्घाटित की है, वहीं विद्वानों के तर्क, युक्ति, प्रमाण एवं लोकानुभव के आधार पर तथा वैज्ञानिकों ने विविध अनुसन्धान एवं प्रयोगों के आधार पर क्रिया या कर्म की फल निष्पत्ति पर प्रकाश डाला है।
इन संग्रहीत एवं एकीकृत निष्कर्षों को ही कर्मवाद, कर्मशास्त्र आदि के रूप में संकलित किया गया है।
जैन दर्शन ने इस विषय में अधिक गहराई से चिन्तन करके कर्मों का सर्वांगपूर्ण विवेचन किया है। तार्किक एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से उसके प्रत्येक पहलू को, परिणामों को प्रज्ञा-निकर्ष पर कसकर, एक निश्चित आकृति एवं अवस्थिति दी है। यह अवस्थिति ही अपनी वैज्ञानिकता के कारण कर्म-विज्ञान के रूप में प्रस्थापित हुई।
कर्म-विज्ञान को समझने वाला व्यक्ति जीवन में कभी भी निराश, हताश और शोकाकुल नहीं होता; क्योंकि वह जानता है, जो कुछ आज मेरे जीवन में हो रहा है, वह मेरे द्वारा किये हुए कर्म का ही परिणाम है, और यह अवश्यमेव भोगना है, और जो कुछ आज कर रहा हूँ उसका भी फल परिणाम रूप में कल मुझे भोराना होगा। अपनी सफलता और असफलता, सुख और दुःख का जिम्मेदार मैं स्वयं हूँ, इसलिए इन प्राप्त फलों के भोग के समय सदा शान्त, प्रसन्न और समभाव में स्थित रहना ही मेरा कर्तव्य है।
इस प्रकार जीवन में शान्ति और मानसिक संतुलन बनाये रखने का मूल रहस्य कर्म-सिद्धान्त के ज्ञान में सन्निहित है।
यह जैन कर्म-विज्ञान की विशेषता भी है और सर्व स्वीकार्य महत्ता भी। प्रस्तुत ग्रन्थ
प्रस्तुत पुस्तक जैन कर्म-विज्ञान का द्वितीय भाग है। इससे पहले प्रथम भाग छप चुका है। उसमें तीन खण्ड हैं। उसके प्रथम खण्ड में "कर्म का अस्तित्व" अनेक प्रमाणों, युक्तियों व वैज्ञानिक मान्यताओं के आधार से सिद्ध किया गया है। दूसरे
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