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________________ कर्म का प्रक्रियात्मक स्वरूप ४६९ प्रकार कर्मों से बंधी हुई प्रत्येक आत्मा प्रभावयुक्त है। प्रभाव का मूल स्रोत कर्म है। सर्वप्रथम कर्म से जीव प्रभावित होता है। जीव में ज्यों ही रागद्वेषात्मक या कषायात्मक भाव आए कि भावकर्म से वह प्रभावित हो गया, भावकर्म के प्रभाव क्षेत्र में आ गया। भावकर्म से फिर संवादी द्रव्यकर्म प्रभावित हुए। दोनों आत्मा को प्रभावित करते हैं। दोनों का प्रभाव क्षेत्र बन गया। दोनों कर्मों की रासायनिक प्रक्रिया का सम्बन्ध हो जाने पर आत्मा और कर्म का बन्धयुक्त सम्बन्ध हो जाता है। फिर भावकर्म द्रव्यकर्म को और द्रव्यकर्म आत्मा को प्रभावित करते हैं, आत्मा भी द्रव्यकर्मों को प्रभावित करती है। यह है-कर्म की एक प्रक्रियात्मक प्रणाली।' आगम में कर्म के प्रक्रियात्मक रूप का एक चित्र एक विशिष्ट कर्म की प्रक्रिया का चित्र भगवती सूत्र में गणधर गौतम और भगवान् महावीर के प्रश्नोत्तर के रूप में मिलता है। वह इस प्रकार - गौतम स्वामी ने भगवान् महावीर से पूछा-"भगवन्! जीव कांक्षामोहनीय कर्म किस कारण से करता है ?" भगवान ने कहा- “प्रमाद से।" गौतम- "भते। प्रमाद कैसे होता है ?" भगवान्– “योग (मन-वचन-काया की प्रवृत्ति) से।" गौतम- “योग किससे होता है ?" . भगवान्– “वीर्य (क्रियात्मक शक्ति) से।" गौतम- “वीर्य किससे होता है ?" भगवान्– “शरीर (औदारिक या वैक्रिय शरीर) से।" गौतम- “शरीर किससे होता है ?" भगवान्- “कर्म (कार्मण) शरीर से।" गौतम- “कर्म शरीर किससे होता है ?" भगवान्- “जीव से।" इसके विपरीत क्रम से चलने पर कार्मिक प्रक्रिया का स्थूल चित्र समझ में आ जाता है। जीव से कर्मशरीर, कर्मशरीर से स्थूल शरीर, फिर स्थूल शरीर से क्रियात्मक शक्ति, क्रियात्मक शक्ति (वीय) से योग, योग से प्रमाद और प्रमाद से कर्म (बन्ध)। यह कर्म का एक प्रक्रियात्मक रूप है। १. कर्मवाद से सारांश पृ. २८-२९ २.. भगवती (व्याख्या प्रज्ञप्ति) सूत्र शतक १, उ. ३, सू. २७ से ३७ तक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004242
Book TitleKarm Vignan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1990
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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