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३५० कर्म - विज्ञान : कर्मवाद का ऐतिहासिक पर्यालोचन (२)
एकाग्रतारूप स्वभाव, तत्पश्चात् पढ़ने में समय का योगदान, फिर अध्ययन करने का पुरुषार्थ ये तीनों तो आवश्यक हैं ही। साथ ही पढ़ने वाले के ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय क्षयोपशम का तथा शुभकर्म का उदय हो एवं प्रकृति के नियम की अनुकूलता (नियंति) का भवितव्यता का भी ध्यान रखा जाए तो अध्ययन करने वाला विद्यार्थी विद्वान् बन सकता है।
मोक्षप्राप्तिरूप कार्य में पंचकारण समवाय
मोक्षप्राप्ति जैसे कार्य के लिए भी पांचों कारणों का समवाय आवश्यक है। काल भी मोक्षप्राप्ति में अनिवार्य है। काल के बिना सम्पूर्ण.. कर्म-मोक्षरूप कार्य की सिद्धि असम्भव है। यदि काल को ही कारण मान लिया जाए, तब तो अभव्य जीव भी मोक्ष प्राप्त कर लेंगे, परन्तु उनका स्वभाव मोक्ष प्राप्त करना नहीं है। भव्यों का ही मोक्ष प्राप्ति का स्वभाव होने से वे ही मोक्ष प्राप्त कर सकेंगे। यदि काल और स्वभाव दोनों को ही मोक्षरूप कार्य के कारण मान लिये जाएँ तो सभी भव्य एक साथ मोक्ष में चले जाएँगे, ऐसा असम्भव है। किन्तु इन दोनों के साथ नियति का योग जिन्हें मिलेगा, वे ही भव्य जीव समय पर मोक्ष में जाएँगे। यदि काल, स्वभाव और नियति, ये तीनों ही मोक्षप्राप्ति के कारण मान लिये जाते तो मगधराज श्रेणिक कभी के मोक्ष प्राप्त कर लेते, किन्तु वे अपने जीवन में मोक्ष के अनुरूप सम्पूर्ण कर्मों का सर्वथा क्षय करने का पुरुषार्थ नहीं कर सके, इसलिए पूर्वोक्त कारणत्रय का योग होने पर भी वे मोक्ष न पा सके । इसलिए मोक्ष प्राप्ति के लिए पूर्वोक्त तीन कारणों के साथ ही पूर्वकृत कर्मक्षय और रत्नत्रयसाधना में पुरुषार्थ ये दोनों कारण होने भी अनिवार्य हैं। शालिभद्रमुनि पूर्वकृत कर्मों का सम्पूर्ण क्षय न होने के कारण मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकें। मरुदेवी माता ने भी स्वभावरमणरूप भावों के पुरुषार्थ तथा क्षपकश्रेणी पर आरूढ़ होकर शुक्लध्यानरूपपुरुषार्थ के कारण मोक्ष प्राप्त किया था। अतः पांच कारणों का सापेक्ष समन्वय ही कार्यसिद्धि के लिए आवश्यक है।
कार्य में इन पांचों की गौणता - मुख्यता सम्भव
यह ठीक है कि किसी कार्य में कोई एक मुख्य हो, दूसरे सब गौण हों। परन्तु ऐसा सम्भव नहीं है कि अकेला कोई एक ही तत्त्व स्वतंत्ररूप से कार्य सिद्ध कर दे। इसलिए यह तो माना जा सकता है कि किसी समय काल की, किसी समय स्वभाव की, और किसी समय नियति की मुख्यता प्रतीत होती है । किसी समय भोक्ता का भाग्य मुख्यरूप से सामने आता है, तथा किसी समय अप्रत्याशित रूप से किसी अनिर्धारित प्रसंग में होनहार (भवितव्यता) आगे आ जाती है। परन्तु पांचों में से एक भी अनुपस्थित हो तो कार्य नहीं बन सकता। मुख्यता-गौणता तो उथली दृष्टि से देखने पर मालूम होती है,
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