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पंच-कारणवादों की समीक्षा और समन्वय
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सर्वत्र पंचकारण-समवाय से कार्यसिद्धि
संसार में देखा जाता है, पांचों कारण मिलने पर यानी पांचों कारणों के समवाय-मेल या समन्वय से कार्य होता है। पांचों में से एक भी कारण न हो तो कार्य निष्पन्न नहीं हो सकता। पांचों अंगुलियाँ इकट्ठी होती हैं, तभी 'हाथ' बनता है। हथेली के लिए पांचों अंगुलियाँ एक दूसरे से संलग्न होती हैं। इनमें छोटी-बड़ी अंगुली अवश्य होती हैं, मगर पांचों के मिलने पर ही 'पहोंचा' होता है। वस्त्रनिर्माण कार्य में पंचकारणसमवाय ___ कपड़ा बनाने के लिए भी पांचों कारणों का मेल होना आवश्यक है। रुई के स्वभाव से वह काती जाती है, कालक्रम से वह सूत बुना जाता है, और उसकी भवितव्यता (नियति) हो, तभी वस्त्र तैयार होता है। अन्यथा उसमें अनेक विघ्न आते हैं, बुनकर बीमार पड़ जाता है, अथवा किसी कारणवश अनुपस्थित रहता है, आदि आदि। बुनकर पुरुषार्थ करता है, तभी वस्त्र बनना शुरू हो जाता है, साथ ही पहनने वाले के शुभकर्मोदय हो तभी वस्त्र पूर्णरूप से तैयार होता है। निष्कर्ष यह है कि वस्त्रनिर्माण में काल, स्वभाव, नियति, कर्म और पुरुषार्थ ये पांचों उपस्थित हों तभी कार्य सम्पन्न होता है, अन्यथा नहीं। इन पांचों में से एक भी न हो तो कार्य सम्पन्न नहीं होता, यह अनुभवसिद्ध है। आग्रफलप्राप्ति में पंचकारण-समवाय .. मान लीजिए, एक बागवान है, वह अपने बाग में आम का वृक्ष लगाकर उसके फल पाना चाहता है। वह पहले यह देखेगा कि आम की गुठली में ही आम होने का स्वभाव है, और आम से आम होना प्रकृति का अटल नियम (नियति) भी है। किन्तु भूमि ठीक करके आम की गुठली बोने का पुरुषार्थ न करेगा तो आम नहीं होगा। अतः बोने का पुरुषार्थ करता है। साथ ही निश्चित काल का परिपाक हुआ या नहीं ? यह भी बागवान देखेंगा। क्योंकि काल की अवधि पूरी हुए बिना आम के पेड़ पर उसका फल नहीं लगेगा। काल की मर्यादा पूर्ण होने पर भी यदि कर्म अनुकूल नहीं हो तो भी आम लगना कठिन है। इतना सब होने पर भी कभी-कभी भवितव्यता न हो तो समय पर लगने वाला आम्र-फल भी नहीं लगता। होनी को कौन टाल सकता है ? अतः पांचों कारणों में से एक या दो हों और बाकी के न हों तो भी कार्य में सफलता नहीं मिल सकती। विद्याध्ययनकार्य में पंचकारण-समवाय
विद्याध्ययन करके विद्वान् बनना चाहने वाले विद्यार्थी को भी इन पांचों कारणों का विचार करना आवश्यक है। अध्ययन करने में चित्त की
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