________________
३०८
कर्म-विज्ञान : कर्मवाद का ऐतिहासिक पर्यालोचन (२),
अतः संसार में प्रत्येक वस्तु अपने-अपने मूल स्वभाव के अनुसार कार्य कर रही है। वर्षा आदि ऋतुओं में प्रातःकाल और सन्ध्याकाल में आकाश में रंग-बिरंगें बादल छा जाते हैं, उनके रंगों की विविधता, नवीनता और आकर्षकता दर्शक को मुग्ध कर देती है और एक घंटे के पश्चात् देखो तो सब अदृश्य एवं लुप्त। कालादि कौन चित्रकार इन्हें चित्रित कर गया और बाद में मिटा गया ? कोई नहीं। ये सब अपने स्वभाव से ही बने और स्वभाव से ही बिगड़े-बिखरे।
मोगरा, चमेली, जाई, जूई, गुलाब, चम्पा आदि फूलों को अलग-अलग • . डिजाइन, आकृति, सुगन्धियाँ, रंग-रूप में किसने बनाए ? अणुबम आदि में प्रचण्ड शक्ति कहाँ से आई ? किसने इनमें शक्ति भरी? ऑक्सीजन और हाईड्रोजन के मिलने पर उनसे पानी कौन निष्पन्न करता है ? विद्युत् का प्रवाह एक सैकंड में लाखों माइल तक पहुँच जाता है, कौन इसे इतनी दूर धकेलता है ? इनमें स्वभाव के सिवाय और कोई कारण नहीं है। उस-उस वस्तु के स्वभाव पर ही यह सब निर्भर है।
जिसका जैसा स्वभाव होता है, वह उसी प्रकार काम करता है। इसके प्रमाण में सैकड़ों उदाहरण प्रस्तुत किये जा सकते हैं। जैसे-सूठ खाने से वह वात नाश करती है, और हरे खाने से वह कब्ज मिटाती है। इसी प्रकार काले कोयले पर चाहे जितना साबुन रगड़ो, वह सफेद नहीं होगा, मूंग के कोरडू को पानी में चाहे जितना उबालो, चाहे जितनी आँच दो, वह कभी सीझेगा नहीं। आशय यह है कि कोई भी पदार्थ अपना स्वभाव नहीं छोड़ता। स्वभाव का अतिक्रमण करना अतीव दुष्कर है।'
जगत् में जो भी घटित हुआ है, होता है अथवा होगा, उसका आधार वस्तु का निजस्वभाव है। स्वभाव के समक्ष बेचारे काल आदि अकिंचित्कर हो जाते हैं।
माठर वृत्ति, न्यायकुसुमांजलि, विशेषावश्यक भाष्य प्रभृति ग्रन्थों में एवं अन्य अनेक दार्शनिकों ने स्वभाववाद का सयुक्तिक निराकरण किया
यदृच्छावाद-मीमासा
यदृच्छावाद का मन्तव्य है कि कोई भी घटना निष्कारण, अहेतुक या
-पंचतंत्र
१. 'स्वभावो दुरतिक्रमः' २. (क) माठर वृत्ति का. ६१
(ख) न्याय-कुसुमांजलि १/५ ३. न्यायभाष्य ३/२/३१
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org