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कर्म - विज्ञान : कर्मवाद का ऐतिहासिक पर्यालोचन (२.
दशपूर्वधर या कुछेक पूर्वों के ज्ञाता थे, उन्हें जितना और जैसा कर्मविषयक ज्ञान का स्मरण था, उनसे ग्रहण - धारण करके ये आकर - कर्मशास्त्र लिखे गये। यह भाग साक्षात् पूर्वी से उद्धृत माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ही जैन सम्प्रदायों के विद्वानों द्वारा रचित कर्मशास्त्रों में यह पूर्वोद्धृत अंश विद्यमान है; क्योंकि ऐसा देखा गया है किं पूर्वविद्या का मूल अंश विद्यमान न रहने के कारण इनमें कहीं-कहीं श्रृंखला खण्डित हो गई है। फिर भी पूर्व से उद्धृत पर्याप्त अंश इनमें सुरक्षित है।
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आकर - कर्मशास्त्रों की रचना के समय तक सम्प्रदाय - भेंद रूढ़ हूं जाने के कारण पूर्व महाशास्त्रों से उद्धृत अंश पृथक् पृथक् नामों से प्रख्यात हैं। जैसे- श्वेताम्बर-सम्प्रदाय में कर्मप्रकृति, शतक, पंचसंग्रह और सप्ततिका, ये चार महाग्रन्थ पूर्वोद्धृत माने जाते हैं। कर्मप्रकृति आचार्य शिवशर्मसूरि द्वारा रचित है, जिसका समय विक्रम की पांचवी शताब्दी माना जाता है। इसमें कर्म सम्बन्धी बन्धन, संक्रमण, उद्वर्तना, अपवर्तना, उदीरणा, निधत्ति, निकाचना, एवं निषेचना इन ८ करणों का, तथा उदय और सत्ता इन दो अवस्थाओं का वर्णन है । 'पंचसंग्रह' महाग्रन्थ आचार्य चन्द्रर्षि महत्तर द्वारा रचित है। इसमें योगोपयोग, मार्गणा, बन्धव्य, बन्ध हेतु और बन्धविधि, इन पांच द्वारों तथा शतकार्दि' पांच ग्रन्थों का समावेश होने से इसका पंचसंग्रह नाम सार्थक है। दिगम्बर सम्प्रदाय में महाकर्मप्रकृति प्राभृत तथा कषाय- प्राभृत, ये दो ग्रन्थ पूर्वों से उद्धृत माने जाते हैं।
(३) प्राकरणिक कर्मशास्त्र - पूर्वोद्धृत कर्मशास्त्र के पश्चात् कर्मवाद के सरल और प्रांजल विकास का यह तीसरा महायुग था । यह विभाग तृतीय संकलन का फल है। इसमें कर्म सम्बन्धी अनेक छोटे-बड़े प्रकरण-ग्रन्थों का अध्ययन-अध्यापन विशेषतः प्रचलित है। इन प्रकरणग्रन्थों का सांगोपांग अध्ययन करने के पश्चात् मेधावी अभ्यासी पूर्वोद्धृत आकर-ग्रन्थों का अध्ययन करते हैं।
इन प्राकरणिक कर्मशास्त्रों का संकलन- सम्पादन विक्रम की आठवीं-नौवीं शताब्दी से लेकर सोलहवीं सत्रहवीं शताब्दी तक हुआ है। यह कर्मसाहित्य रचना का उत्कर्षकाल है। इस काल में कर्मसिद्धान्त पर विभिन्न आचार्यों द्वारा रचित प्रकरण ग्रन्थों के पठन-पाठन की ओर विशेष रुचि जगी । कर्मवाद - विषयक प्रकरणग्रन्थों के पठन-पाठन को इस युग में
१. शतकादि पांच ग्रन्थ इस प्रकार हैं - ( १ ) शतक. (२) सप्ततिका, (३) कषाय- प्राभृत, (४) सत्कर्म - प्राभृत और (५) कर्म प्रकृतियाँ ।
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