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विलक्षणताओं का मूल कारण : कर्मबन्ध १४९
वह ९ वर्ष की आयु में माध्यमिक परीक्षा उत्तीर्ण करके 'लिपजिंग' विश्वविद्यालय में प्रविष्ट हुआ। और १४ वर्ष की आयु तक पहुँचने पर उसने न केवल स्नातकोत्तर परीक्षा उत्तीर्ण की, वरन् विशेष अनुमति लेकर साथ ही पी-एच. डी. की डिग्री भी प्राप्त कर ली । १६ वर्ष की आयु में उससे भी ऊँची एल एल. डी. की उपाधि अर्जित कर ली और उन्हीं दिनों वह बर्लिन विश्वविद्यालय में प्रोफेसर भी नियुक्त किया गया।
'न्युरोन फिजियोलॉजी इन्ट्रोडक्शन' के लेखक डॉ. जी. सी. एकिल्स ने इस घटना पर टिप्पणी करते हुए लिखा है- ये अनुभव यह बताते हैं कि मनुष्य का बाल्यावस्था में उपलब्ध इतना ज्ञान जन्मान्तरों के (संचित कर्म) संस्कारों के अतिरिक्त क्या हो सकता है ? "
पं. सुखलालजी ने कर्मग्रन्थ भा. १ की प्रस्तावना में विलक्षणताओं के प्रतीक कई ऐतिहासिक उदाहरण प्रस्तुत किये हैं, वे भी पूर्वजन्म और कर्म के अस्तित्व की साक्षी दे रहे हैं।
प्रकाश के आविष्कारक डॉ. यंग की विलक्षण बौद्धिक क्षमता
`प्रकाश की खोज करने वाले डॉ. यंग दो वर्ष की आयु में पुस्तक को बहुत अच्छी तरह पढ़ सकते थे । चार वर्ष की आयु में वे दो दफा बाइबल पढ़ चुके थे। सात वर्ष की आयु में उन्होंने गणितशास्त्र पढ़ना प्रारम्भ किया था। और १३ वर्ष की उम्र में लेटिन, हिब्रू, ग्रीक, फ्रेंच, इटालियन आदि अनेक भाषाएँ सीख ली थीं ।
बचपन से ही विलक्षण प्रखरबुद्धि का धनी : रोवन हेमिल्ट
सर विलियम रोवन हेमिल्ट ने तीन वर्ष की उम्र में हिब्रू भाषा सीखनी शुरू की और सात वर्ष की आयु में तो इस भाषा में इतनी निपुणता प्राप्त कर ली कि डबलिन की ट्रिनिटी कॉलेज के एक फेलो को यह स्वीकार करना पड़ा कि "कॉलेज के फेलो- पद के प्रार्थियों में भी उसके जितना ज्ञान नहीं है।" तेरह वर्ष की आयु में उसने कम से कम १३ भाषाओं पर अधिकार प्राप्त कर लिया था ।
साहित्य क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित करने वाली बालिका
ई. सन् १८९२ में जन्मी हुई एक बालिका सन् १९०२ में सिर्फ १० वर्ष की आयु में एक नाटक मण्डली में सम्मिलित हुई। उसने उस आयु में
अखण्ड ज्योति, जनवरी १९७८ के अंक से साभार पृ. ८ प्रथम कर्मग्रन्थ प्रस्तावना. (पं. सुखलालजी) से साभार पृ. ३३
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