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________________ १४८ कर्म-विज्ञान : कर्म का अस्तित्व (१) मेरठ जिले में 'शामहम' नामक एक छोटे-से गाँव में 'मिरजा अमीर अहमद' नामक पाँच वर्ष का बालक कुरान की आयतें और रामायण के दोहे एक भी गलती के बिना जल्दी-जल्दी बोल जाता था। आश्चर्य यह है कि वह अभी तक स्कूल में नहीं गया था। आस्ट्रेलिया में नौ वर्ष की उम्र के एक भारतीय लड़के ने बी. ए. पास कर लिया। फिर वह आगे पढ़ने लगा। सरकार ने उसे स्कॉलरशिप देने का निश्चय किया है। वह फ्रेंच, जर्मन आदि कई भाषाएँ भी जानता है। ये जन्मजात विलक्षणताएँ पूर्वजन्मार्जित कर्म के सिवाय और किसी कारण नहीं हो सकती।' ऐसी विलक्षणता भी कर्म (पूर्वकृत कम) के अस्तित्व की साक्षी है। : फ्रेडरिक गॉस की गणितीय विलक्षणता महान् गणितज्ञ जॉन कार्ल फ्रेडरिक गॉस भी बचपन से ही ऐसी ही विलक्षण प्रतिभा का धनी था। ३० अप्रैल १६७७ को जर्मनी के ब्रसविक नगर में जन्मे गॉस के पिता गरीब किसान थे। वे छोटी-मोटी ठेकेदारी भी करते थे। तीन साल की आयु में गॉस ने मजदूरों का हिसाब कर रहे अपने पिता की हिसाब से भूल पकड़ ली, और उसे सुधार भी दी। नौ वर्ष की आयु में उसने कक्षा के अध्यापक को उस समय विस्मित और चमत्कृत कर दिया, जब गणित का लम्बा प्रश्न ब्लैक बोर्ड पर लिखकर जैसे ही अध्यापक रुका, गॉस ने उस कठिन प्रश्न का सही उत्तर प्रस्तुत कर दिया। चौदह वर्ष की आयु में गॉस की गणितज्ञ के रूप में प्रसिद्धि फैल गई। ब्रसविक.के राजा ने उसे अपने दरबार में बुलाया। वहाँ भी उसने अपनी गणितविद्या की सहज उपलब्धि से सबको आश्चर्यचकित कर दिया। १९ वर्ष की उम्र में उसने यूक्लीडियन गणितसूत्रों में एक मूलभूत संशोधन प्रस्तुत किया कि १७ समान भुजाओं की आकृति को परकार तथा सीधी रेखाओं द्वारा भी बनाया जा सकता है। बाईस वर्ष की आयु में उसने अपनी थीसिस में-'फंडामेंटल थ्योरम ऑफ अलजब्रा' नामक सिद्धान्त प्रस्तुत किया। जिसने गणितीय जगत् में तहलका मचा दिया। यह विलक्षणता भी पूर्वजन्म में उपर्जित कर्म के फल को प्रमाणित करती है। कार्लविट की बौद्धिक विलक्षणता का मूल कारण : पूर्वजन्मकृत कर्म ही जर्मनी के कार्लविट नामक बालक ने अल्प आयु में ही आश्चर्यजनव बौद्धिक प्रगति करने वाले बालकों में अपना कीर्तिमान स्थापित किया है। १ बाल जीवन (गुजराती मासिक पत्र) दिसम्बर १९६४ से २ अखण्ड ज्योति, जनवरी १९७८ के अंक से साभार उद्धृत पृ. ८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004242
Book TitleKarm Vignan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1990
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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