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________________ प्रेतात्माओं का साक्षात और सम्पर्क : पुनर्जन्म का साक्षी १११ और अनेक प्रेतात्माओं से आत्मीयतापूर्ण स्नेह सम्पर्क स्थापित करने में सफलता प्राप्त की। एक बार हॉलैण्ड के मृत राजदूत की विधवा पत्नी पति के द्वारा कहीं रखे हुए दस्तावेजों के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करने के लिए उनके पास आई। 'एमेनुअल' ने उक्त मृतात्मा का आह्वान करके उससे पूछकर वह स्थान बता दिया, जहाँ वे महत्वपूर्ण दस्तावेज रखे हुए थे। मैडम ब्लैवेटस्की द्वारा प्रेतात्माओं से सम्पर्क स्थापित थियोसोफिकल सोसाइटी की जन्मदात्री मैडम ब्लैवेटस्की को बचपन से ही दिव्य आत्माओं का सान्निध्य प्राप्त होने लगा था। वे सहसा ऐसी तथ्यपूर्ण बातें कह बैठती थीं, जिन्हें कह पाना विशेषज्ञों के लिए ही सम्भव था। परन्तु बाद में जब प्रेतात्माओं के साथ प्रत्यक्ष सम्पर्क के प्रमाण देखने को मिले, तो परिवार और समाज वालों को उनकी विशेषता एवं सत्यता स्वीकार करनी पड़ी। मैडम ब्लैवेटस्की के कथनानुसार उनकी मंडली में सात सहयोगी प्रेत थे, जो समय-समय पर उन्हें उपयोगी परामर्श और मुक्त मन से सहयोग देते थे। उन्होंने अनेक व्यक्तियों की मृत-आत्माओं का आह्वान करके उनके माध्यम से उनकी समस्याओं को हल किया था। छह प्रेतों के सहयोग से आर्थर धनिक, कवि, लेखक एवं विद्वान अमेरिका के कन्सास सिटी का एक निर्धन व्यक्ति था-'आर्थर एडवर्ड स्टिलबैल'। उसने अपनी जिंदगी ४० डालर प्रतिमास कुलीगीरी की नौकरी से प्रारम्भ की। किन्तु पूर्वजन्म के शुभकर्मोदय से १५ वर्ष की आयु में उसके साथ छह प्रेतों की मण्डली जुड़ गई, जो जीवन भर उसका साथ देती रही। उन ६ प्रेतों में तीन इंजीनियर, एक लेखक, एक कवि और एक अर्थविशेषज्ञ था। उनके साथ अनायास ही उसकी मैत्री हो गई। उनके मार्गदर्शन से वह उच्चकोटि का धनवान, विद्वान, लेखक और कवि बन गया, जबकि उसके पास न तो ज्ञान था, न अनुभव और न ही साधन। फिर भी सभी योजनाओं में वह आश्चर्यजनक रूप से सफल होता गया। प्रेस के माध्यम से सुकरात द्वारा सहस्रो व्यक्तियों को मार्गदर्शन । सुकरात को एक हितैषी प्रेत-आत्मा (डेमन) की सहायता से अतीन्द्रिय दर्शन की तथा आध्यात्मिक मार्गदर्शन देने की क्षमता प्राप्त हुई। वह प्रेत उन्हें अदृश्यरूप से आजीवन विशिष्ट मसलों के सम्बन्ध में २अखण्ड ज्योति, नवम्बर ७६ पृ. ३५ अखण्डज्योति नवम्बर १९७६ में प्रकाशित घटना से पृ. ३५ वही नवम्बर ७६ में प्रकाशित घटना से पृ. ३५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004242
Book TitleKarm Vignan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1990
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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