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________________ ११० कर्म-विज्ञान : कर्म का अस्तित्व (१) प्रेतात्माओं का अड्डा : अमेरिका का राष्ट्रपति भवन अमेरिका के राष्ट्रपति भवन में समय-समय पर एब्राहिम लिंकन, राष्ट्रपति जैक्सन आदि पिछले कई राष्ट्रपतियों तथा उनकी पत्नियों की प्रेतात्माएँ डेरा डाले पड़ी रहती हैं। वे अपने सम्बन्धित व्यक्तियों को सहायता देने, परिस्थितियों को संभालने तथा अपनी प्रिय वस्तुओं की सुरक्षा करने के लिए बार-बार अपने अस्तित्व का परिचय देती रहती हैं। राष्ट्रपति मेडीसन की मृत-पत्नी अपने हाथ से लगाये हुए गुलाब के पौधों के.. रख-रखाव के बारे में मालियों को कई तरह के परामर्श देती थी। राष्ट्रपति ट्रूमैन को लिंकन का प्रेत दिखाई देता था।' जार्ज लेथम द्वारा आत्मा और पुनर्जन्म के ठोस प्रमाण विश्वविख्यात 'लाइट' पत्रिका के सम्पादक ‘जार्ज लेथम' ने अपनी लेखमाला- 'मैं परलोकवादी क्यों हूँ ?' शीर्षक से कई पत्रों में प्रकाशित कराई थी। उनका पुत्र 'जॉन' फैलडर्स के मोर्चे पर महायुद्ध में मारा गया था। तोप के गोले से उसका शरीर टुकड़े-टुकड़े हो गया था। पर उसकी आत्मा ने पुनर्जन्म प्राप्त करके अपने पूर्वजन्म के पिता से सतत सम्पर्क बनाये रखा। लेथम ने लिखा- "मेरे लिए मेरा पुत्र स्वर्गीय जॉन अभी भी जीवित की तरह सतत सन्देश का आदान-प्रदान करता है।" उन्होंने आत्मा और पुनर्जन्म की अपनी इस मान्यता को भ्रान्ति या भावावेश समझने वाले लोगों की शंकाओं का खण्डन करके ऐसे ठोस प्रमाण प्रस्तुत किये हैं, जिनके आधार पर मरणोत्तर जीवन पर सन्देह करने वालों को इस सन्दर्भ में प्रामाणिक जानकारियाँ तथा तथ्य तक पहुँचने में सहायता मिल सकेगी।"२ मृतात्माओं से वार्तालाप एवं सम्पर्क किसी माध्यम द्वारा आजकल एक प्रयोग मृत-आत्माओं का आह्वान करने और उनसे उनकी शंकाओं एवं समस्याओं का समाधान कराने में माध्यम बनने का भी हुआ है। उनके माध्यम से दूसरे व्यक्ति अपने सम्बन्धी मृत-आत्माओं से बातचीत करते हैं। इन प्रयोगों के परीक्षण करने पर ज्ञात हुआ कि वे निष्कर्ष प्रायः यथार्थ निकलते हैं। स्वीडन के अठारहवीं शताब्दी के शरीरशास्त्र, अर्थशास्त्र एवं खगोल विद्या के माने हुए विद्वान 'एमेनुअल' ने परलोक विद्या पर गहरी खोज की १ अखण्ड ज्योति अक्टूबर १९७५ में प्रकाशित 'स्नेह और सहयोग भरी पितर आत्माएँ' से सार संक्षेप पृ. २२ २ वही, नवम्बर ७६ पृ. ३५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004242
Book TitleKarm Vignan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1990
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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