SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्म - विज्ञान : कर्म का अस्तित्व (१) जानकारी एवं मार्गदर्शन देता रहता था। इसके माध्यम से सुकरात ने सहस्रों व्यक्तियों को सही मार्गदर्शन दिया और आत्म-कल्याण के पथ पर आरूढ़ किया।' ११२ जार्ज बर्नार्ड शॉ की पत्नी 'पेट्रीशिया' अपने मृत पति से एकान्त में बातें करती और उनकी (बर्नी की) प्रेरणा से वह साहित्य लिखा करती थी। 'जॉन ऑफ आर्क' ने बताया कि उसे विशिष्ट कार्य करने की शक्ति और प्रेरणा किसी अदृश्य प्रेतात्मा से मिलती है। साहित्य सृजन : प्रेतात्मा के सहयोग से इसी प्रकार इंग्लैण्ड के सुप्रसिद्ध लेखक 'तोएल कोवर्ड' ने अपनी रचना 'दि ब्लिथे स्पिरिट' को, अमेरिका की श्रीमती रूथं मांटगुमरी ने अपने ग्रन्थ 'ए वर्ल्ड बियोंड' को और श्रीमती जॉन कूपर ने 'टेल्का' आदि विविध उपन्यास किसी न किसी दिव्य अदृश्य आत्मा के मार्गदर्शन और सहयोग से लिखा है। ३ चार्ल्स डिकेन्स अपने प्रसिद्ध उपन्यास मिस्ट्री ऑफ एडविनहुड' के २० अध्याय लिख कर ही चल बसे थे। दो वर्ष बाद उनकी मृत आत्मा ने 'थॉमस जेम्स' को माध्यम बनाकर शेष कार्य स्वयं लिखवा कर पूर्ण किया।*. 'एडवेंचर्स ऑफ स्पिरिच्युएलिज्म' के लेखक बम्बईवासी पोस्टन जी. डी. महालक्ष्मीवाला ने ३ सितम्बर १९२५ को एक प्रसिद्ध परलोक विद्याविद् अमेरिकी डॉ. पी. वल्स की मृतात्मा का आव्हान किया एक सफेद कागज रखकर। मृतात्मा ने उस कोरे कागज पर अपने हस्ताक्षर किये, जो डॉ. पी. वल्स के जीवित अवस्था में किये गए हस्ताक्षरों से बिलकुल मिलते-जुलते थे 19 जज द्वारा परलोक विद्या का अध्ययन और तथ्योद्घाटन प्रो. बी. डी. ऋषि इन्दौर में जज थे। उनकी धर्मपत्नी सुभद्रादेवी की मृत्यु ने उनमें मृतपत्नी से वार्तालाप की इच्छा जगाई। फिर वे इसी खोज में लग गये। वे सफल हुए। फिर उन्होंने अपना पूरा जीवन परलोक विद्या के अध्ययन में लगा दिया। उन्होंने कई मृतात्माओं को बुलाकर अत्यन्त १ अखण्ड ज्योति नवम्बर १९७६ में प्रकाशित घटना से पृ. ३७ २ वही, पृ. ३७ ३ अखण्डज्योति नवम्बर ७६ में प्रकाशित घटना से पृ. ३६ ४ वही, पृ. ३६ ५ वही, नवम्बर ७६, में प्रकाशित घटना से पृ. ३९ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004242
Book TitleKarm Vignan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1990
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy