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________________ प्रेतात्माओं का साक्षात और सम्पर्क : पुनर्जन्म का साक्षी १०७ जीवशास्त्री ‘कैरिंग्टन' पहले मरणोत्तर जीवन को काल्पनिक मानता था, किन्तु एक घटना ने प्रेतात्मा और पुनर्जन्म के अस्तित्व में उसका विश्वास दृढ़ कर दिया। वह लिखता है - एक दिन जब मैं अपनी प्रयोगशाला से लौट रहा था तो एकाएक मुझे मेरा मृत मित्र 'इलियट' सामने से आता हुआ दिखाई दिया, मैंने सोचा कि कहीं मुझे भ्रम तो नहीं हो गया है ? मेरे मित्र को मरे ३ माह हो चुके हैं। मैं उसकी शवयात्रा में स्वयं रहा हूँ, इन्हीं आँखों से उसको दफन होता देखा है। फिर इलियट पुनः यहाँ कैसे आ गया ? तभी क्षीण - सी आवाज सुनाई दी - "मित्र ! मेरी पत्नी आर्थिक तंगी का जीवन जी रही है। मैंने उसके लिए एक लाख डालर जोड़कर अमुक तहखाने में रखे हैं। जिसकी चाभी गुप्त रूप से अमुक स्थान पर रखी है। आप उसे चुपचाप वह बता दें। आप से अधिक विश्वासपात्र और कोई नहीं है। इसीलिए यह बात आप तक पहुँचा रहा हूँ।" मैंने उसकी कही हुई बात की सत्यता का अनुभव किया, उसकी आवाज सुनी, रूप देखा, स्पर्श भी किया। इन तथ्यों पर से मरणोत्तर जीवन की सत्यता में मुझे कोई सन्देह या भ्रम नहीं रहा । ' प्रेतात्मा द्वारा अपनी उपस्थिति का चिन्ह ܕ 'श्रीमती 'एलिस वैल' ने अपने पति स्व. कैनेडी का सन् १९६८ में मरणोपरान्त जैसा चेहरा देखा था, वैसा ही हूबहू चित्र, एक दिन पहले खरीदे हुए नये बेलचे पर उभरा हुआ देखा। जहाँ कैनेडी का बिम्ब उभरा था, वहाँ छूकर देखा तो वह भाग गर्म था । आश्चर्यचकित एलिस वैल ने परामनोवैज्ञानिक 'डॉ. टिमोरी वेल जोन्स' से परामर्श किया तो उसने भी hash की प्रेतात्मा के रूप में उपस्थिति का स्वीकार किया । बेलचे का गर्म होना भी इस बात का प्रमाण है कि कैनेडी की प्रेतात्मा ही द्रवित होकर इस चित्र में उपस्थित है। ' अदृश्य सत्ता द्वारा मार्गदर्शन एवं सहयोग अदृश्य सत्ता द्वारा मार्गदर्शन की, भविष्य की दुर्घटना से सावधान करने की, तथा सहायता करने की देश- विदेश की तथा अतीत और वर्तमान की कई सच्ची घटनाएँ मिलती हैं, जो पूर्वजन्म और पुनर्जन्म के तथा कर्म और कर्मफल के अस्तित्व को सिद्ध करती हैं। जिससे सम्बद्ध व्यक्ति अनिष्ट से बचने और अभीष्ट को प्राप्त करने में समर्थ होते हैं। १ अखण्ड ज्योति, मार्च १९७८ में प्रकाशित घटना से पृ. ४ २. अखण्डज्योति, जुलाई १९७९ में प्रकाशित घटना से पृ. ७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004242
Book TitleKarm Vignan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1990
Total Pages644
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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