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१०६ कर्म-विज्ञान : कर्म का अस्तित्व (१) 'किम' ने इसका जिक्र अपने साथी अभिनेता 'रिचार्ड जानसन' से किया तो उसने कहा कि यह तेरहवीं सदी के प्रसिद्ध राजा 'किंग जान' की प्रेतात्मा है। ११ अक्टूबर १२१६ को 'राजा जान' अपने दुश्मनों के चंगुल से भाग कर शरण लेने इसी किले में रुका था। दूसरे दिन एक खाई को पार करते समय नौका दुर्घटना में उसकी मृत्यु हो गई थी। उसकी आसक्ति पिछले साढे सात सौ वर्षों से इस किले के साथ बनी हुई है। इसकी प्रतीति इस किले में रहने वालों को होती रहती है।'
ये और इस प्रकार की घटनाएँ प्रेतात्माओं तथा पुनर्जन्म (मरणोत्तर जीवन) के साथ ही कर्मकृत फल के अस्तित्व की सूचक हैं। मृत्यु के बाद भी जीवात्मा की अतृप्त आकांक्षाएँ तथा वासनाएँ कर्मजन्य संस्कारों के रूप में बनी रहती हैं। उनकी पूर्ति के लिए वह कर्मवशात् व्यन्तर देवों की जातिप्रेतयोनि में जन्म लेता है। उसकी यह आसक्ति द्वेषमूलक ही नहीं होती, प्रेममूलक भी होती है। प्रेतात्माओं द्वारा प्रियपात्र को अदृश्य रूप से सहायता .
कभी-कभी यह आसक्ति इतनी गहरी होती है कि प्रेतात्मा अपने प्रियपात्र को अदृश्य रूप से सहायता भी देती है।
सन् १९६१ के जून मास की घटना है। स्ट्रामबर्ग का 'जेम केलघन' शराब के नशे में धुत होकर रात्रि के गहन अंधेरे में चला जा रहा था कि एकाएक पीछे से आवाज आई "रुको केलघन !" उसने पीछे मुड़कर देखा तो कहीं कोई दिखाई न दिया। अब भी आवाज गूंज रही थी। फिर उसे आवाज सुनाई दी- 'बेटा' । सहसा इस आवाज को सुनकर उसे अपनी मां का ध्यान आया, जो २७ वर्ष पूर्व मर चुकी थी। सोचने लगा-"क्या यह उसकी मां की प्रेतात्मा है ?" इस पर पुनः अदृश्य आवाज आई-"बेटा। तुम्हें इन (मद्यपान आदि) कुकृत्यों को छोड़ देना चाहिए। तुम नहीं जानते कि मुझे कितना कष्ट उठाना पड़ रहा है। जब तक तुम अपने दुष्कृत्यों को नहीं छोड़ोगे, मुझे शान्ति नहीं मिलेगी।" माँ की इन बातों को सुनकर 'केलघन' का दिल दहल गया। उसने तत्काल मन में संकल्प लिया-"आज से मैं कभी शराब नहीं पीऊँगा, तथा अपने आचरण को श्रेष्ठ बनाऊंगा।" फिर केलघन ने उस अदृश्य प्रेतात्मा से कहा-'यदि तुम मेरी मां हो तो अपने हाथों से मुझे छूकर प्रतीति कराओ।' इतना कहते ही 'मा' की प्रेतात्मा ने अपना हाथ केलघन की कमीज की बांह पर रख दिया। मां के हाथ का चिन्ह कमीज की बांह पर उभर आया, जो आज भी लंदन के परगेटरी म्यूजियम (हाउस ऑफ शैडोज) में सुरक्षित है। १ अखण्ड ज्योति जुलाई १९७९ में प्रकाशित घटना से पृ. ५ २ अखण्डज्योति के जुलाई १९७९ में प्रकाशित घटना से पृ. ६
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