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षट्प्राभूते
[ ६.४६
निदानं कृत्वा कार्यं विमुच्य सौधर्मेन्द्रस्य देवी जाता । कैवर्तस्तु संसारे भ्रमित्वा मिथ्यातपः कृत्वा ज्येष्ठासुतो जातः । अथ सावस्तिपुरे राजा वासव: । तन्महादेवी मित्रवती । तया विद्युन्मती नाम्नी कन्या जनिता । तडिद्दंष्ट्रस्य विद्याधरस्य सा दत्ता । सौधर्मेन्द्रदेवी च्युत्वा विद्युन्मतीगर्भे स्थिता | नवमे मासे कष्टेन जनिता । विद्युम्मती विद्याधरी पीडावशेन निर्विन्ना ( ण्णा ) सती सावस्तिनगरे पर्वतगुहायां त्याजिता । तत्र गुहायां चतस्रो द्विजपुत्र्य क्रीडितुं कन्यापुण्येनागताः । उमा उमा इति शब्देन रटन्ती ताभिदृष्टा उमेति नाम कृत्वा सा कोमलाङ्गी करुणया.. गृहमानीता । ब्राह्मणपुत्रीभिश्चतसृभि सा कन्या राजकुले विद्युन्मत्या' [ मित्र
बत्या ^ "महादेव्या 'वासवनृपपत्न्या दर्शिता । तथापि गृहीत्वा पुत्र्याः पुत्री निज
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वाला मेरा भर्ता हो । ऐसा निदान कर वह शरीर छोड़ सौधर्मेन्द्र की देवी हुई । वह धीवर संसार में भ्रमण कर मिथ्या तप के प्रभाव से ज्येष्ठा का पुत्र हुआ ।
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तदनन्तर सावस्तिपुर में एक वासव नामका राजा रहता था उसकी रानी का नाम मित्रवती था । मित्रवती ने विद्युन्मती नामकी कन्या को जन्म दिया तथा वह कन्या विद्युद्दंष्ट्र नामक विद्याधर को दी गई । साध्वी का जीव जो सौधर्मेन्द्र की देवी हुई थी वहाँ से च्युत होकर विद्य न्मती के गर्भ में आई और नौवें मास में बड़े कष्ट से उत्पन्न हुई । विद्युन्मती विद्याधरी प्रसवकालिक पीड़ा से अत्यन्त खिन्न हो गई थी इसलिये उसने उस कन्या को सावस्ति नगर के समीप पर्वत की गुफा छुड़वा दिया । कन्या के पुण्य से प्रेरित हुई चार ब्राह्मण कन्याएँ क्रीड़ा करने के लिये उस गुफा में आई । ब्राह्मण कन्याओं ने 'उमा उमा' इस
में
१. अत्रत्यः पाठो भिन्न भिन्न पुस्तकेषु यथा बुद्धि पाठकैः संशोधितः । शुद्ध पाठस्तु ममदृष्टौ एवं प्रतिभाति ब्राह्मण पुत्रोभिश्चतसृभिः सा कन्या विद्युन्मत्या इति महाविद्याया ज्ञात्वा राजकुले महादेव्या वासवनुपपत्न्याः सा बालिका दर्शिता ।
"ब्राह्मण की चार पुत्रियों ने महाविद्या से यह जानकर कि यह विद्युन्मती की पुत्री है, राजकुल में वासव नृप की पत्नी - मित्रवती को वह कन्या दिखलाई' इति च तदर्थं ।
२. महाविद्या घ० ( ? ) महाविद्यायाः इति क प्रती लिखित्वा केनापि महादेव्या
इति संशोधियम् ।
३. रम्या इति संशोषितं ।
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