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षट्नाभृते
[६. ४६नगरे रत्नमाली खगनरेन्द्रो मनोहरी विद्याधरी कान्ता, तत्पुत्र रुद्रमाली। स एकस्मिन् दिने स्वच्छन्दं वने विहरमाणो विद्यां साधयन्ती विद्याधरकुमारी ददर्श । तदरूपमोहितो विद्यया भ्रमरो बभूव । षण्मासपर्यन्तं तद्वदनकमल स्थिति चकार । पुनः सूक्ष्मो भूत्वा स्तनयोजघने च तस्थौ। पश्चात्प्रकटीकृत निजशरीरः स तया परिगलितर्यो भणितः-प्रतीक्षस्व कियत्कालं तावत् विघ्नं मा कार्षीः । शिखिदुर्लभा विद्या सिद्धयति तस्यां सिद्धायां तव जाया भविष्यामि । हे सुभग ! बद्धानरागाहं वर्ते । तदा तेन सा पृष्टा । भद्रे ! त्वं कस्य धूदा ? । भणितं च तया। । अत्रैव पर्वते उत्तरस्यां श्रेणी गन्धर्वपुरपत्तनाधीशो मम पिता महाबलः । तस्य प्रभाकरी भार्या । तयोधूदा प्रसिद्धाहमचिमालिनी । तयापि पृष्टः त्वं कः ? स आह अत्र गिरौ दक्षिणश्रेणौ किन्नरगीतप्रभुरत्नमालिमनोहर्योः सुतोऽहं रुद्रमाली नाम ।
राजा रहता था। उसकी स्त्रीका नाम मनोहरी विद्याधरी था। उन दोनोंके रुद्र-माली नामका पुत्र था। एक दिन वह स्वच्छन्दतापूर्वक वनमें विहार कर रहा था। उसी समय उसने विद्या सिद्ध करती हुई एक विद्याधर कुमारी को देखा। उसके रूपसे मोहित होकर रुद्रमाली विद्या. से भ्रमर बन गया और छह महोने तक उसके मुख कमलमें रहा आया। उसके बाद और भो सूक्ष्म रूप बना कर स्तनों तथा. जघन प्रदेश में रहा आया । पश्चात् उसने अपना असली शरीर प्रकट किया उस समय उसका धेर्य छूट रहा था अर्थात् वह उस विद्याधर-कुमारी को पानेके लिये अत्यन्त उत्कण्ठित हो रहा था। यह देख विद्याधर कुमारी ने कहा कि कुछ समय तक प्रतीक्षा करो, विघ्न मत करो। शिखिदुर्लभा नामकी विद्या सिद्ध हो रही है उसके सिद्ध होनेपर मैं तुम्हारी स्त्रो बन जाऊँगी। हे सुभग ! मैं तुम्हारे प्रति बद्धानुराग हूँ। ___ उस समय रुद्रमाली ने उससे पूछा कि हे भद्रे ! तू किसकी पुत्री है ? उसने कहा कि इसी पर्वत को उत्तर श्रेणोपर गन्धर्वपुर नगर का राजा महाबल रहता है वह मेरा पिता है । उसको स्त्रीका नाम प्रभाकरी है । में अचिमालिनी नामसे प्रसिद्ध उन्हीं दोनों की पुत्री हूँ। इस प्रकार अपना परिचय देकर विद्याधर कुमारीने भी पूछा कि तुम कौन हो ? तब रुद्रमाली ने कहा कि इसी पर्वत की दक्षिण श्रेणी पर किन्नरगीत नामका नगर है। उसके राजा रत्नमालो और रानी मनोहरी का में रुद्रमाली नामका
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