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________________ ५४२ षट्प्राभूते [५. १४८यद्व्याहंति न जातु किचिदपि न व्यावहन्यते केनचिद् । यन्निष्पीतसमस्तवस्त्वपि सदा केनापि न स्पृश्यते । यत्सर्वज्ञसमक्षमप्यविषयस्तस्यापि चादिगिरां । . तद्वः सूक्ष्मतमं 'स्वतत्वमभया भाव्यं भवोच्छित्तये ॥१॥ तथा अनन्तसौख्यं भगवतः सिद्धस्य भवति तदप्यनन्तज्ञानगुणसद्भावात् परमानन्दोत्पत्तिलक्षणं वस्तुस्वरूपपरिच्छेदकत्वमेव वेदितव्यं । तथा चोक्तं विमानपंक्त्युपाख्यानपर्यन्ते । तथा हि शास्त्रं शास्त्राणि वा ज्ञात्वा तीवं तुष्यन्ति साधवः । सर्वतत्वार्थविज्ञाना न२ सिद्धाः सुखिनः कथं ॥ विशेषार्थ-यहाँ बलका अर्थ अनन्त वीर्य है। केवलज्ञान और केवलदर्शनके द्वारा अनन्तानन्त द्रव्य और उनके पर्यायोंके स्वरूप को जाननेकी जो शक्ति है वह अनन्तवीर्य कहलाती है। भगवान् किसी का व्याघात करने में अपने बलका प्रयोग नहीं करते अन्यथा उनके सूक्ष्मत्व गुणके अभाव का प्रसङ्ग आ जायगा। जैसा कि महाकवि आशाधर जी ने कहा है यव्याहन्ति-जो कभी किसी का व्याघात नहीं करता और न कभी किसी के द्वारा व्याघात को प्राप्त होता है। जो समस्त वस्तुओं के आकार को सदा स्वयं निष्पीत किये हैं अर्थात् अपने आपमें प्रतिबिम्बित किये है परन्तु स्वयं किसी अन्यके द्वारा स्पृष्ट नहीं होता। जिसे सर्वज्ञ प्रत्यक्ष जानते हैं तो भी जो वाणीका विषय नहीं है वह अत्यन्त सूक्ष्म तत्व ही तुम्हारा निजका तत्व है। हे सप्तभय से रहित सम्यग्दृष्टि पुरुषों! संसारका उच्छेद करने के लिये तुम उसीका चिन्तवन करो। इसी प्रकार सिद्ध परमेष्ठी के जो अनन्त सुख नामका गुण है वह भी अनन्त ज्ञान गुण के सद्भाव से परमानन्द की उत्पत्ति रूप वस्तु स्वरूप को जानने की जो योग्यता है तद्प ही जानना चाहिये। जैसा कि विमान पंक्तिव्रत की कथाके अन्त में कहा गया है शास्त्रं-जब एक या चार छह शास्त्रोंको जानकर साधु अत्यन्त संतुष्ट होते हैं-सुखी होते हैं, तब समस्त तत्वार्थ को जानने वाले सिद्ध भगवान् सुखी क्यों नहीं होंगे ? अवश्य होंगे ॥१॥ १. मभवा म०। २. विज्ञान म Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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