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-५. १४८] भावप्राभृतम्
५४१ यथाख्यातचारित्रघातकत्वात् । षोडश कषायाः । तथाहि-अनन्तानुबन्धी क्रोधोऽनन्तानुबन्धी मानोऽनन्तानुबन्धिनी मायाऽनन्तानुबन्धी लोभश्चेति चत्वारः कषायाः सम्यक्त्वघातकाः पूर्वोक्तं त्रिविधं दर्शनमोहनीयं च । अप्रत्याख्यानक्रोधोऽप्रत्याख्यानमानोऽप्रत्याख्यानमायाऽप्रत्याख्यानलोभश्चेति चत्वारः कषायाः श्रावकवतघातकाः। प्रत्याख्यानक्रोधः प्रत्याख्यानमानः प्रत्याख्यानमाया प्रत्याख्यानलोभश्चेति चत्वारः कषाया महाव्रतपातकाः । संज्वलनक्रोधः संज्वलनमानः संज्वलनमाया संज्वलनलोभश्चेति चनारः कषाया यथाख्यात-चारित्रघातकाः। अन्तरायः पंचविधो दानान्तरायो लाभान्तरायो भोगान्तराय उपभोगान्तरायो वीर्यान्तरायश्चेति । एतत्सर्व कर्म (णिट्ठवइ भवियजीवो ) निष्ठापयति क्षयं नयति, कोऽसौ ? भविकजीवो भव्यजनः । ( सम्मं जिणभावणा जुत्तो ) सम्यग्जिनभावनायुक्तो जिनसम्यक्त्वाराधक इत्यर्थः। बलसोक्खणाणदसण चत्तारि वि पायडा गुणा होति । गळे घाइचउक्के लोयालोयं पयासेदि ॥१४॥
बलसौख्यज्ञानदर्शनं चत्वारोपि प्रकटा गुणा भवन्ति । नष्टे घातिचतुष्के लोकालोकं प्रकाशयति ॥ १४८ ॥ (बलसोक्खणाणदंसण ) बल चानन्तवीयं केवलज्ञानदर्शनाभ्यामनन्तानन्तद्रव्यपर्यायस्वरूपरिच्छेदकत्वलक्षणा शक्तिरनन्तवीर्यमुच्यते न तु कस्यचिद्घातकरणे . भगवान् बलं विदधाति सूक्ष्मगुणाभावप्रसक्तेः तथा चोक्तमाशापरेण महाकविना
है। शेष सोलह कषाय कहलाती हैं जिनमें अनन्तानुबन्धी क्रोध मान मावा और लोभ ये चार कषाय तथा पहले कहा हुआ तीन प्रकार का पर्शनमोहनोय ये सात प्रकृतियां सम्यक्त्व का घात करने वाली हैं। बप्रत्याख्यान क्रोध मान माया और लोभ ये चार कषाय श्रावक के व्रतोंकरपात करने वाली हैं। प्रत्याख्यान क्रोध मान माया और लोभ ये चार कषाय महाव्रत की घातक हैं तथा सज्वलन क्रोध मान माया और लोभ . में पार कषाय यथाख्यातचारित्र को घातक हैं। अन्तराय पांच प्रकार
है-दानान्तराय, लाभान्तराय, भोगान्तराय, उपभोगान्तराय और वीर्यान्तराय । सम्यग् जिन भावनासे युक्त भव्य जीव इन सब कर्मोका क्षय
करता है। ... बससोक्स-सम्यग्दर्शन के प्रभाव से चार घातिया कोंके नष्ट होने
पर इस जीव के बल, सुख, ज्ञान और दर्शन ये चार गुण प्रकट होते हैं तथा मक बोर अलोक को प्रकाशित करने लगता है ॥ १४८ ॥
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