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________________ ५४० ___षट्नाभृते [५. १४७परमनिश्चयेन तु आत्मा केवलज्ञानमेव तन्मयत्वात् । ( णिदिवो जिणवरिदेहि ) निर्दिष्टः प्रतिपादितः कथित आत्मा जिनवरेन्द्रः सर्वज्ञवीतरागैरिति तात्पर्यार्थः । दसणणाणावरणं मोहणियं अंतराइयं कम्मं । णिदुवइ भवियजीवो सम्मं जिणभावणाजुत्तो ॥१४७॥ .. दर्शनज्ञानावरणं मोहनीयमन्तरायं कर्म। निष्ठापयति भव्यजीवः सम्यग्जिनभावनायुक्तः ॥ १४७ ॥ ( दसणणाणावरणं ) दर्शनावरणं नवविध, तत्र चक्षुर्दर्शनावरणं अचक्षुर्दर्शनावरणं अवधिदर्शनावरणं केवलदर्शनावरणचेति चतुर्विधं दर्शनावरणं निद्रानिद्रानिद्रा-प्रचला-प्रचला-प्रचला स्त्यानगृद्धिश्चेति पंचविधा निद्रा एवं नवविध दर्शनावरणं । मतिज्ञानावरणं श्रुतज्ञानावरणं अवधिज्ञानावरणं मनःपर्ययज्ञानावरण केवलज्ञानावरणं चेति पंचविधं ज्ञानावरणं । ( मोहणियं अंतराइयं कम्म) मोहनीयं कर्म अष्टाविंशतिभेदं, अन्तरायं कर्म पंचभेदे। तत्राष्टाविंशतिभेदं मोहनीयं कर्म यथा-तत्र त्रिविधं दर्शनमोहनीयं सम्यक्त्वं मिथ्यात्वं सम्यग्मिथ्यात्वं चेति । चारित्रमोहनीयं पंचविंशतिभेदं, अकषायभेदा नव हास्यं रतिः अरति शोको भयं जुगुप्सा स्त्रोवेदः पुवेदो नपुंसकवेदश्चेति नव नोकषाया अकषाया उच्यन्ते ०७॥ कारण आत्मा केवल ज्ञानरूप ही है, ऐसा वीतराग सर्वज्ञ देवने कहा है ॥ १४६ ।। . गाथार्थ-सम्यक् जिनभावना से युक्त अर्थात् जिनसम्यक्त्व का आराधक भव्य जीव, ज्ञानावरण मोहनीय और अन्तराय कर्मका क्षय करता है ॥ १४७ ॥ विशेषार्थ-चक्षुर्दर्शनावरण, अचक्षुर्दर्शनावरण, अवधिदर्शनावरण और केवलदर्शनावरण ये चार दर्शनावरण तथा निद्रा, निद्रा-निद्रा प्रचला, प्रचला, प्रचला और स्त्यानगृद्धि ये पाँच निद्राएं दोनों मिलाकर दर्शनावरण कर्म नौ प्रकारका है। मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण, अवधिज्ञानावरण, मनःपर्ययज्ञानावरण और केवलज्ञानावरण ये पाँच ज्ञानावरण के भेद हैं । मोहनीय के अट्ठाईस भेद हैं जिनमें सम्यक्त्व, मिथ्यात्व और सम्यगमिथ्यात्व ये तीन दर्शन मोहनीय के भेद हैं। चारित्र मोहनीय के पच्चीस भेद हैं जिनमें हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्री-वेद, पुरुषवेद और नपुसकवेद, ये नो कषाय अथवा अकषाय कहलाती हैं क्योंकि ये यथाख्यातचारित्र की घातक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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