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________________ -५. १२०] भावप्रामृतम् ५११ गोपाय इव धूलतोल्लासः । संसारसागरपरिभ्रमाय नौयुग्ममिव लोचनयुगलं । दुःखाटवीविनिपातकरमिव वाचि माधुर्य । मृत्युगजप्रलोभनकवल इवायमधरपल्लवः । स्पर्शविषकन्दोभेद इव पयोधरविनिवेशः । यमपाशवेष्टनमिव भुजलतालिङ्गन । उत्पत्तिजरामरणवत्मव बलीनां त्रयं । आलंभनकुण्डमिव नाभिमण्डलं। अखिल. गुणविलोपनखरेखेव रोमराजीविनिर्गमः । कालव्यालनिवासभूमिरिव मेखलास्थानं । व्यसनागमनतोरणमिवोरनिर्माणं । अपि च भ्रूर्षनुर्दृष्टयो वाणास्त्रिशूलं च बलित्रयम् । हृदयं कर्तरी यासां ताः कथं न नु चण्डिकाः ॥ १॥ गुणग्रामविलोपेषु साक्षाद्दीतयः स्त्रियः । स्वर्गापवर्गमार्गस्य निसर्गादर्गला इव ॥ २॥ . गूथकीटो यथा गूथे रति कुरुत एव हि । तथा स्व्यमेष्यसंजातः कामी स्त्रीविडतो भवेत् ॥ ३ ॥ रूपी मृगों को बांधने के लिये मानों जाल ही है । भ्रकुटीरूपी लता का जो उल्लास है वह पुनर्जन्म रूपी वृक्ष पर चढ़ने के लिये मानों उपाय ही है। नेत्र युगल संसार रूपी सागर में घुमाने के लिये मानों दो नौकाएँ ही हैं। वचनों की मधुरता मानों दुःख रूपी अटवी में गिराने का एक साधन ही है। स्त्रियोंका यह अधर पल्लव मृत्यु रूपी हाथी को लुभाने के लिये मानों ग्रास ही है। स्तन मण्डल स्पर्श विष ( जिसके छूनेके साथ ही मृत्यु हो जाय, ऐसा विष ) के कन्दका मानों प्रादुर्भाव हो है। भुजलता का आलिङ्गन मानों यमराजका पाश वेष्टन ही हो अर्थात् बांधने की रस्सी (लेज) ही हो । नाभिके नीचे विद्यमान तीन रेखा रूप बलित्रय मानों जन्म जरा और मरण का मार्ग ही हो। नाभिमण्डल मानों हत्याका कुण्ड हो हो । रोमराजी को उत्पत्ति मानों समस्त गणों को नष्ट करने के लिये नख को रेखा ही है। नितम्ब मण्डल मानों यम रूपी सर्प की निवास भूमि ही है और जांघों की रचना मानों दुःखोंके आगमन के लिये निर्मित तोरण ही है । और भी कहा है भूषनु-जिनकी भौंह धनुष है, दृष्टि बाण है, वलित्रय त्रिशूल है और हृदय कैंची है वे स्त्रियाँ चण्डिका कैसे नहीं हैं अर्थात् अवश्य हैं । गुणग्राम-स्त्रियां गुणोंके समूह को लुप्त करने के लिये साक्षात् दुर्नीति स्वरूप हैं और स्वर्ग तथा मोक्षके मार्गको रोकने के लिये आर्मल हैं। .... गृषकीटो-जिस प्रकार विष्ठा का कीड़ा विष्ठा में ही प्रीति करता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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