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-५.९९] भावप्राभृतम्
४७३ { ७ ) मिश्र (८) अपक्कं (९) लिप्त (१०) चेति एतदन्न सेव्यमसेव्यं वेति शंकित (१) सस्नेहहस्तपात्रादिना यद्दत्त तन्म्रक्षितं (२) सचित्तपद्मपत्रादौ यत्क्षिप्तं तन्निक्षिप्तं ( ३) सचित्तेन पद्मपत्रादिना यत्पिहितं तदन्नं पिहितं ( ४ ) यच्चूतफलादिकं वहु त्यक्त्वाल्पसेवनं तदुज्झितं, अथवा यत्पानादिकं दोयमानं बहुतरेण गलनेनाल्पसेवनं तदुज्झितं ( ५ ) यद्यतीनां संभ्रमादादरतया चेलपात्रादेरसमीक्ष्याकर्षणं स आगमे व्यवहार उच्यते ( ६ ) दातृदोषः कथ्यन्तेनिर्वस्त्रः शौण्डः पिशाचः अन्धः पतितः मृतकानुगः तीव्ररोगी व्रणी लिंगी नीचस्थानस्थितः उच्चस्थानस्थित आसन्नभिणी कोऽर्थः ? निकटजनितापत्या वेश्या
पिहित (४) उज्झित (५) व्यवहार (६) दातृ (७) मिश्र (८) अपक्व (९) और लिप्त (१०)। __ अब इनका स्वरूप कहते हैं-'यह अन्न सेवन करने योग्य है अथवा अयोग्य है' ऐसी शङ्का जिसमें हो गई हो वह शङ्कित नामका दोष है १ । चिकने हाथ अथवा पात्र आदिसे जो आहार दिया जाता है वह म्रक्षित नामका दोष है २। सचित कमल पत्र आदि पर रख कर जो दिया जाता है वह निक्षिप्त दोष है ३ । सचित्त पद्मपत्र आदिसे ढककर जो दिया जाता है वह पिहित नामका दोष है ४ । जिस आम्रफल आदिक आहार में से बहत भाग छोड़कर थोड़े भागका ग्रहण होता हो अथवा जो शरबत
आदिकं पेय पदार्थ लेते समय नीचे अधिक गिर जाते हैं और ग्रहण में थोड़े • आते हैं उनका लेना उज्झित नामका दोष है ५ । मुनियोंके आ जानेसे उत्पन्न संभ्रम-हड़बड़ाहट अथवा आदर की अधिकता से वस्त्र तथा वर्तन आदिको बिना देखे जल्दी घसोटना व्यवहार नामका दोष है ६ । अब दाता के दोष कहते हैं-ऐसा दाता दान देनेका अधिकारी नहीं है जो निर्वस्त्र हो-वस्त्ररहित हो अथवा एक वस्त्रका धारक हो, मद्यपायो हो, पिशाच की बाधा से पीड़ित हो, अन्धा हो, जातिका पतित हो, मृतक की शव-यात्रा में गया हो, तीव्ररोगी हो, जिसे कोई घाव हो रहा हो, कुलिङ्गी-मिथ्या साधुका वेष रखे हो, जहाँ मुनि खड़े हों वहाँ से बहुत नीचे स्थान में खड़ा हो अथवा दातासे ऊंचे स्थान पर खड़ा हो, आसन्न गभिणो हो अर्थात् जिसके पाँच माससे अधिक का गर्भ हो, बच्चा जनने वाली हो, वेश्या हो, दासो हो, परदाके भीतर छिपकर खड़ी हो, अपवित्र
१. व्यपहार इति दोष नाम अन्यत्र । २. मूलाचार माषा ५.।
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