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________________ षट्प्राभृते [५.९९मुच्यते (५) अहो जिनदत्त ! त्वं जगति विस्थातो दाता वर्तसे इत्यादिभिर्वच गृहस्थस्यानन्दजननं भुक्तेः पूर्व तत्पूर्वस्तवनं (६) एवं भुक्तेः पश्चात् स्तवनविधानं पश्चात्स्तुतिः ( ७ ) क्रोधं कृत्वाऽन्नोपार्जनं क्रोधः (८) मानेनान्नार्जनं मानः (९) माययाऽन्नार्जनं माया (१०) लोभेनान्नार्जनं लोभः (११ ) वशीकरणमंत्रतंत्राद्युपदेशेन यदन्नोपार्जनं तद्वश्यकम ( १२ ) स्वकीयतपःश्रुतजातिकुलादिवर्णनं स्वगुणस्तवनं ( १३ ) सिद्धविद्यासाधितविद्यादोनां प्रदर्शनं विद्योपजीवनं. ( १४ ) अङ्गशृङ्गारकारिणः पुरुषस्य पाठसिद्धादिमंत्राणामुपदेशनं मंत्रोपजीवनं (१५) एवं चूर्णादेरुपदेशनं चूर्णोगजीवनं ( १६ ) एते षोडशोत्पादनदोषा वेदितव्याः । अथषणादशदोषा कथ्यन्ते । तेषामयं नामनिर्देशः । शंकितं ( १ ) म्रक्षितं ( २ ) निक्षिप्तं ( ३ ) पिहितं ( ४ ) उज्झितं (५) व्यवहारः ( ६ ) दातृ दोष कहा जाता है ५ । 'अहो जिनदत्त ! तुम जगत् में प्रसिद्ध दाता हो' इत्यादि वचनों के द्वारा आहार पूर्व गृहस्थ को हर्ष उत्पन्न करना पूर्व स्तुति नामका दोष है ६ । इसी प्रकार आहारके पश्चात् स्तुति करना पश्चात्स्तुति नामका दोष है ७ । क्रोध दिखाकर आहार प्राप्त करना क्रोध दोष है ८ । मान दिखा कर आहार प्राप्त करना मान दोष है ९ । माया दिखाकर अन्न प्राप्त करना माया दोष है १०। लोभ दिखाकर आहार प्राप्त करना लोभ दोष है ११ । वशीकरणके मन्त्र तथा तन्त्र आदिका उपदेश देकर जो आहार प्राप्त किया जाता है वह वश्यकर्म नामका दोष है १२ । अपना तप, शास्त्र ज्ञान, जाति तथा कूल आदिका वर्णन करना स्वगुण-स्तवन नामका दोष है १३ । स्वयं सिद्ध अथवा अनुष्ठान द्वारा सिद्धकी हुई विद्याओंका प्रदर्शन करना विद्योपजीवन नामका दोष है १४ । शरीरका शृङ्गार करनेवाले पुरुषको पाठसिद्ध आदि मन्त्रों का अर्थात् ऐसे मन्त्रोंका जो पढ़ने हो के साथ सिद्ध हो जाते हों उपदेश देना मन्त्रोपजीवन नामका दोष है १५ । इसी तरह चूर्ण आदि बनानेका उपदेश देना चूर्णोपजीवन नामका दोष है १६ । ये सोलह उत्पादन दोष हैं अर्थात् आहार प्राप्त करनेके उपायों से सम्बद्ध हैं और मुनिके आश्रित हैं अर्थात् इनका दायित्व मुनिपर है। अब आगे एषणा सम्बन्धी दस दोष कहे जाते हैंप्रथम उनके नाम निर्देश करते हैं-शखित (१) प्रक्षित (२) निक्षिप्त (३) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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