________________
-५. ९९ ]
भावप्राभृतम्
४७१
अथोत्पादनदोषाः षोडश उच्यन्ते -- तन्नामनिर्देशो यथा । धात्रीवृत्तिः (१) दूतत्वं (२) भिषग्वृत्तिः (३) निमित्तं ( ४ ) इच्छाविभाषणं (५) पूर्वस्तुति: ( ६ ) पश्चात्स्तुति: (७) क्रोषचतुष्कं ( ८- ९-१०-११) वश्यकर्म (१२) स्वगुणस्तवनं (१३) विद्योपजीवनं (१४) मंत्रोपजीवनं (१५) चूर्णोपजीवनं (१६) । बाललालनशिक्षादिर्घात्रीत्वं (१) दूरबन्धुजनानां वचनानां नयनमानयनं च दृतत्वं (२) गजचिकित्सा विषचिकित्सा जांगुल्यपरनामा बालचिकित्सा तादृशान्यचिकित्साभिरशनार्जनं भिषग्वृत्तिः (३) स्वरान्तरिक्ष भौमाङ्गव्यञ्जनच्छिन्नलक्षणस्वप्नाष्टाङ्गनिमित्तैरशनार्जनं निमित्त (४) कश्चित्पृच्छति हे मुने ! दीनहीनादीनामन्नादिदानेन पुण्यं भवेन्न वा भवेत् ? मुनिरन्नाथं वदति पुण्यं भवेदेवेत्यभ्युपगम इच्छाविभाषण
कहलाता है (१६) । ये सोलह उद्गम दोष हैं, आहार- देय पदार्थ से सम्बद्ध हैं तथा श्रावक के आश्रित हैं अर्थात् इनका दायित्व श्रावक के ऊपर है |
अत्र आगे सोलह उत्पादन दोष कहे जाते हैं। सबसे प्रथम उनके नाम निर्दिष्ट करते हैं - धात्री वृत्ति १ दूतत्व २, भिषग्वृत्ति ३, निमित्त ४, इच्छाविभाषण ५, पूर्व स्तुति ६, पश्चात् स्तुति ७, क्रोध चतुष्क (८-९१०-११) वश्यकर्म १२, स्वगुणस्तवन १३, विद्योपजीवन १४, मन्त्रोपजीवन १५, चूर्णोपजीवन १६ ।
इनका स्वरूप इस प्रकार है
बालकों के लालन-पालन तथा शिक्षा आदिके द्वारा गृहस्थों को प्रभावित कर जो आहार प्राप्त किया जाता है वह धात्रीत्व दोष है १ । दूरवर्ती बन्धुजनों अथवा सम्बन्धियोंके संदेश वचन ले जाना अथवा ले आना और इस विधि से गृहस्थों को आकृष्ट कर आहार प्राप्त करना दूतत्व दोष है २ । गज चिकित्सा, विषचिकित्सा, झाड़ना, फूँकना आदि बाल चिकित्सा तथा इसी प्रकार की अन्य चिकित्साजों के द्वारा गृहस्वों को प्रभावित कर आहार प्राप्त करना भिषग्वृत्ति नामक दोष है, ३ स्वर, अन्तरिक्ष (ज्योतिष), भौम, अङ्ग, व्यञ्जन, छिन्न, लक्षण और स्वप्न इन अष्टाङ्ग निमित्तों से श्रावकों को आकृष्ट कर आहार लेना निमित्त नामका दोष है, ४ कोई पूछता है कि मुनिराज ! दीन हीन आदि लोगों को अन्न आदिका दान देने से पुण्य होता है या नहीं ? इसके उत्तर में आहार प्राप्त करने के उद्देश्य से मुनि कहता है कि अवश्य ही होता है इस तरह के उत्तर से श्रावक को प्रभावित कर आहार प्राप्त करना इच्छा विभाषण
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org