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षट्प्राभूते
[५.९९वासी काण्डपटादिनान्तरिताः अशुचिः किमपि भक्षयन्ती इत्यादयो दोषा दातृगा ज्ञातव्याः (७ ) षड्जीवसम्मिश्र मिश्रः (८) पावकादिद्रव्यैरपरित्यक्तपूर्वस्वकीयवर्णगन्धरसमपक्वं (९) लिप्तकिराद्यर्दीयमानमशनादिकं लिप्तं तथाऽ.. प्रासुकजलमृत्तिकोल्मुकादिभिलिप्तैयद्दीयते तल्लिप्तं ( १०)।
स्वादनिमित्तं यत्संयोजनं शीते उष्णं उष्णे शीतमित्यादिमेलनं तदनेकरोगाणामसंयमस्य च कारणं ज्ञातव्यं १ कुक्षेरधमंशमन्नेन पूरयेत् तृतीयमंशं कुक्षेः पानेन पूरयेत् कुक्षेश्चतुर्थमंशं वायोः सुखप्रचारार्थमवशेषयेत् रिक्तं रक्षेत् अस्मात्प्रमाणा. वतिरेकोऽधिकग्रहणं अप्रमाणदोषः । प्रमाणातिक्रमेण किं भवति ? ध्यानभंगः, अध्ययनविनाशः, अत्युत्पत्तिः, निद्रोत्पत्तिः आलस्यादिकं च स्यात् २ इष्टान्नपानादिप्राप्ती रागेण सेवनं अंगारदोषः ३ अनिष्टान्नपानादिप्राप्ती द्वषेण सेवा हो अर्थात् मूत्र आदि को बाधासे निवृत्त होकर शुद्धि किये बिना आई हो, अथवा चाहे जो ( अभक्ष्य ) भक्षण करने वाली हो। इत्यादि दाता से सम्बन्ध रखने वाले दोष हैं। ऐसे सदोष दाता से आहार लेना दात दोष है ७ । जिस आहार में छह कायके जीव मिल गये हों वह मिश्र नामका आहार है उसे लेना सो मिश्र नामका दोष है ८। अग्नि आदि द्रव्योंसे जिनके पहलेके रूप गन्ध तथा रसमें परिवर्तन नहीं हुआ हो अर्थात् जो अपक्व हो वह अपक्व नामका दोष है ९ । और घी आदिसे लिप्त करछली (चम्मच ) आदिके द्वारा जो आहार दिया जाता है अथवा जो अप्रासुक जल, मिट्टो तथा राख आदिसे लिप्त वर्तनोंके द्वारा दिया जाता है लिप्त आहार है इसका लेना सो लिप्त नामका दोष है ।१०॥
स्वाद के निमित्त भोजन को जो एक दूसरे के साथ मिलाया जाता है वह संयोजन नामका दोष है जैसे शीत वस्तुमें उष्ण और उष्ण में शीत वस्तु इत्यादिका मिलाना। यह संयोजन अनेक रोगों और असंयम का कारण है, ऐसा जानना चाहिये १ । पेटका आधा भाग अन्नसे भरे तृतीय अंशको पानीसे भरे और चौथे भागको वायुके सुख-पूर्वक संचारके लिये खाली छोड़ दे । इस प्रमाणका यदि उल्लङ्घन किया जाता है अर्थात् अधिक आहार ग्रहण किया जाता है तो अप्रमाण नामका दोष होता है ।
प्रश्न-प्रमाणका उल्लंघन करने से क्या होता है ?
उत्तर-ध्यानभङ्ग, अध्ययन में बाधा, पीड़ा की उत्पत्ति, निद्राकी उत्पत्ति और आलस्यादिक दोष उत्पन्न होते हैं । २ इष्ट अन्न पान आदिके मिलने पर राग भावसे सेवन करना अङ्गार दोष है। ३ और अनिष्ट भन्न पानके मिलने पर द्वेष-पूर्वक सेवन करना धूम दोष है।
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