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________________ ४३० षट्प्राभृते [५. ७९मणमत्तदुरयं) विषयकषायान् गच्छन्तं मनोमत्तदुरियं मत्तगजं त्वं धर रक्ष । (णाणंकुसएण मुनिपवर) ज्ञानाङ्कशेन निष्ठुरमस्तकप्रहारेण हे मुनिप्रवर ! महामुनिमतल्लिक ! इति शेषः । पंचविहचेलचायं खिदिसयणं दुविहसंजमं भिक्खू । । भावं भाविय पुव्वं जिलिंगं 'णिम्मलं सुद्ध॥७९॥ पञ्चविधचेलत्यागं क्षितिशयनं द्विविधसयमं भिक्षो!। ... भावं भावयित्वा पूर्व जिनलिंगं निर्मलं शुद्धम् ॥७९॥ (पंचविहचेलचायं ) पंचविधानि पंचप्रकाराणि चेलानि वस्त्राणि तेषां त्यागः परिहारो यस्मिन् जिनलिंगे जिनमुद्रायां तत्पंचविधचेलत्यागं । उक्तं च गौतमेन गणिना प्रतिक्रमणसूत्रे "अंडजं वा कोशजं तसरिचोरं ( १ ) वोडजं वा कर्पासवस्त्रं (२) रोमजं वा ऊर्णामयं वस्त्रं एडकोष्ट्रादिरोमवस्त्रं ( ३ ) वक्कजं वा वल्क वृक्षादित्वग्भंगादिछल्लिवस्त्रं तटटाविकं चापि ( ४ ) धर्मजं वा मृगचर्मव्याघ्रचर्मचित्रकचर्मगजचर्मादिकं न परिधानीयं ( ५)" . भावकी भावना करना चाहिये । अथवा पांच महाव्रत, पांच समिति और तीन गुप्तियां ये तेरह प्रकारकी क्रियाएँ हैं। यही तेरह प्रकार का सम्यक्चारित्र है सो हे भव्य पुरुष हो! तुम इसकी भावना करो। विषय कषाय की ओर जाते हुए मन रूपी मत्त हाथीको तुम ज्ञान रूपी अंकुश से वश करो ॥७॥ गाथार्य-जिसमें पांच प्रकारके वस्त्रोंका त्याग किया जाता है, पृथिवी पर शयन किया जाता है, दो प्रकारका संयम धारण किया जाता है, भिक्षा-भोजन किया जाता है, भावकी पहले भावना की जाती है तथा शुद्ध-निर्दोष प्रवृत्ति की जाती है वही जिनलिङ्ग निर्मल कहा जाता है ॥७९॥ विशेषार्थ-प्रतिक्रमण सूत्रमें गौतम गणधरके कहे अनुसार वस्त्र पांच प्रकारके होते हैं-१ अण्डजकोशा तथा रेशमी वस्त्र, २. बोंडजसूती वस्त्र, ३. रोमज-भेड़ तथा ऊँट आदि के रोमोंसे उत्पन्न ऊनी वस्त्र, ४. वल्कज-वृक्ष आदि की त्वचा अथवा छाल आदिसे उत्पन्न फट्टी आदि और ५. चर्मज-मगचर्म, व्याघ्रचर्म, चित्रकचर्म तथा गजचर्म आदि । १. उत्तम । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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