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गुप्तिषु स्वल्पातिचारे, पैशुन्यकलहादिकरणे, वैयावृत्यस्वाध्यायादिप्रमादे, गोचरगतस्य लिंगोत्थाने, अन्यसंक्लेशकरणादौ च प्रतिक्रमणं प्रायश्चित्तं भवति । दिवसान्ते रात्र्यन्ते भोजनगमनादौ च प्रतिक्रमणं प्रायश्चित्तं । लोचनखच्छेदस्वप्नेन्द्रियातिचाररात्रिभोजनेषु पक्षमाससंवत्सरादिदोषादौ च उभयं आलोचनप्रतिक्रमणप्रायश्चित' 'मौनादिना [ मौनाद्विना ] लोचकरणे उदरकृमिनिर्गमे, हिममशकादिमहावातादि संघर्षातिचारे, स्निग्धभू हरित तृणपंकोपरिगमने, जानुमात्रजलप्रवेशकरणे, अन्य निमित्तवस्तुस्वोपयोगकरणे, नावादिनदीतरणे, पुस्तकप्रतिमापातने, पंचस्थावर वघाते, अदृष्टदेशतनुमलविसर्गादो, पक्षादिप्रतिक्रमणक्रियायां, अन्तर्व्याख्यानप्रवृत्त्यन्तादिषु कायोत्सर्ग एव प्रायश्चितं । उच्चारप्रस्रवणादौ च कायोत्सर्गः प्रसिद्ध एव । अनशनादिकरणस्थानमागमाद्वोद्धव्यं । नवविधप्रायश्चित्ते किं फलं ? भावप्रासादोऽनवस्था शल्याभावदाढर्घादिकं फलं वेदितव्यं ।
भावप्रामृतम्
होता है । दिनके अन्तमें, रात्रिके अन्त में और भोजन तथा गमन के प्रारम्भ में भी प्रतिक्रमण नामक प्रायश्चित्त होता है ।
केशलोंच, नखच्छेद तथा स्वप्न में जननेन्द्रिय-सम्बन्धी अतिचार लगना स्वप्न में ही रात्रि भोजन करना, पक्ष, मास तथा वर्षं आदि के दोषों की समीक्षा के समय आलोचना और प्रतिक्रमण दोनों ही प्रायश्चित्त होते हैं।
बिना मौनके लोच करना, उदरसे कृमिका निकल आना, हिम, मच्छर आदि तथा तीव्र आंधी आदिके समय संघर्ष से अतिचार लगना, तेल तथा घी आदि से स्निग्ध भूमि, हरे तृण और कीचड़ पर चलना, घुटने मात्र गहरे जलमें प्रवेश करना दूसरे के निमित्त रखी हुई वस्तुका अपने आपके लिये उपयोग करना, नाव आदिके द्वारा नदी का पार करना, पुस्तक तथा प्रतिमा का नीचे गिर जाना पांच प्रकार के स्थावर जीवोंका घात होना, बिना देखे स्थान में शरीरका मल छोड़ना, पक्ष आदिके प्रतिक्रमण की क्रिया और व्याख्यान के प्रारम्भ तथा अन्त आदि के समय कायोत्सर्ग करना ही प्रायश्चित्त है । दीर्घ शङ्का तथा लघुशङ्का आदि के समय कायोत्सर्ग करना प्रसिद्ध ही है । अनशन आदि तपोंके करनेका स्थान आगम से जानना चाहिये ।
१. अनगारधर्मामृते तु मौनादिना विनालोचनकरणे । सर्वपुस्तकेषु ईदृगेव पाठः । २. संहर्षा म० क० ।
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