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भोग सुख के कारण जीव ने अनन्त भवसागर
भ्रमण किया है
प्राणिवध के कारण जीव चौरासी लाख
योनियों में घूमा है
अभयदान की प्रेरणा
३६३ मिथ्यामतों का वर्णन
मिथ्यादृष्टि जीव अपने स्वभाव को नहीं
छोड़ता
अभव्य जीव को जिनधर्म नहीं रुचता
कुत्सित धर्म के सेवन का फल तीन सौ तिरेसठ पाखण्डी मतं छोड़ने का
उपदेश
सम्यग्दर्शन से रहित जीव चलवश है सम्यग्दृष्टि की प्रशंसा
जिनलिङ्ग की प्रशंसा
सम्यग्दर्शन धारण करने का उपदेश
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जीव का स्वरूप
भव्य जीव ज्ञानावरणादि कर्मों का नाश
करता है
घातिया कर्मों के नष्ट होने पर प्रकट
होने वाले गुण
सम्यग्दर्शन से जीव परमात्मा बनता है
जिनवर की चरण वन्दना का फल सत्पुरुष कषायरूपी विष से लिप्त नहीं होता
सत्पुरुष का लक्षण
धीर वीर पुरुषों का लक्षण
विषय रूपी सागर के पार करने वाले
भगवान धन्य हैं
ज्ञानरूपी शस्त्र के द्वारा माया रूपी बेल का नाश
चारित्ररूपी खड्ग के द्वारा पाप रूपी स्तम्भ नाश होता है
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