SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गाथा ४६४ ४६६ ४७७-४७८ ४७९ ४८० ४८१ ४८२-४८४ ४९० ४९१ १११ नौ प्रकार का ब्रह्मवत धारण करने का उपदेश भाव सहित मुनि ही चार आराधना को प्राप्त . करता है भाव श्रमण ही कल्याण को प्राप्त करते हैं आहार के ४६ दोषों का वर्णन सचित्त भक्त पान तीव्र दुःख का कारण है १००-१०१ पांच प्रकार की विनय का उपदेश १०२. जिनभक्ति और वैयावृत्य का उपदेश आलोचना का वर्णन १०४ क्षमा का वर्णन १०५-१०७ दीक्षा काल के भाव का स्मरण करने का वर्णन भाव रहित जीवों का बाह्यलिङ्ग अकार्यकारी है अहारादिसंभाओं की आसक्ति का फल ११० भावशुद्धि पूर्वक उत्तरगुणों का पालन कर तत्त्व की भावना करने का उपदेश ११२-११३ परिणाम ही बन्ध और मोक्ष का कारण है ११४-११७ शील के अठारह हजार भेदों का तथा चौरासी लाख उत्तरगुणों का वर्णन धर्म्य और शुक्लध्यान का वर्णन भाव श्रमण ही ध्यानकुठार के द्वारा संसार रूपी वृक्ष को छेदते हैं रागरूपी वायु से रहित होकर ध्यान रूपी दीपक जलता है पञ्चपरम गुरुओं के ध्यान की प्रेरणा ज्ञान सलिल की महिमा भावश्रमणों का भावांकुर नष्ट हो जाता है १२४ भावश्रमण बनने की प्रेरणा १२५-१२६ भावभ्रमण धन्य हैं १२७ भावमुनि ऋद्धियों में मोहित नहीं होते १२८-१२९ बात्म हित करने की प्रेरणा १३०--१३१ ४९२-४९३ ४९५-५०० . ११८ ५०० ५०६ ५०८ ५१३ ५१५ ५१६ ५१७-५१९ ५२१ ५२२-५२३ ५२३-५२५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy