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________________ गाथा . पृष्ठ मुनि रूपी चन्द्रमा का वर्णन विशद्ध भावों का फल १५८ १५९-१६३ ५५५-५५८ मोक्ष पाहुड .५६०-५६१ ५६२-५६३ ५६४ ५६५ . ५६९ ५७०-५७४ ५७४ ५७८ ५७९ . ५८० १८ ११ मङ्गलाचरण और प्रतिज्ञा वाक्य . . १-२ आत्मतत्त्व की महिमा और उसके तीन भेद ३-४ बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा के लक्षण सिद्धों का वर्णन परमात्मा के ध्यान का क्रम बहिरात्मा का वर्णन देह से निरपेक्ष पुरुष ही निर्वाण को पाता है बन्ध और मोक्ष विषयक जिनोपदेश स्वद्रव्य में रत जीव सम्यग्दृष्टि है परद्रव्य में रत जीव मिथ्यादृष्टि है परद्रव्य और स्वद्रव्य की रति का फल परद्रव्य का लक्षण स्वद्रव्य का लक्षण स्वद्रव्य के ध्यान का फल १९-२३ कालादि लब्धि से आत्मा ही परमात्मा होता है . २४ व्रत और तप से स्वर्ग की प्राप्ति होना अच्छा है २५ शुद्ध आत्मा से ध्यान की प्रेरणा आत्मा का ध्यान किसके होता है ? २७-२८ निर्जल्प ध्यानी का विचार ध्यानस्थ मुनि कर्म क्षय करता है व्यवहार में सोनेवाला स्वकार्य में जागता है ३१-३२ ध्यान और अध्ययन का उपदेश आराधक का लक्षण और आराधना का फल ३४-३७ रत्नत्रय का लक्षण ३७-३८ दर्शन शुद्ध मनुष्य ही निर्वाण को पाता है सम्यक्त्व का लक्षण ४० सम्यग्ज्ञान का लक्षण ५८२-५८५ ५८६ ५८७ ५८९ ५८९-५९२ ५९३ ५९४ ५९५ ५९६ ५९६-५९९ ६०० ६०१ ६०२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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