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पंट्प्रामृते
[५.७०( पयहिं जिणवरलिगं ) हे जीव! हे आत्मन् ! प्रकटय जिनवरलिंगं पूर्व जिनवरलिंग त्वं घर नग्नो भव ! पश्चात्कथंभूतो भव, ( अभितरभावदोसपरिसुद्धो ) अभ्यंतरभावेन जिनसम्यक्त्वपरिणामेन कृत्वा दोषपरिशुद्धो दोषरहितो भव । इदमत्र तात्पर्य द्रव्यलिंगं विना भावलिंगी सन्नपि मोक्षं न लभत इत्यर्थः शिवकुमारो भावलिंगी भूत्वापि स्वर्ग गतो न तु मोक्षं, जम्बूस्वामिभवे द्रव्यलिंगी अतिकष्टेन संजातस्तस्मिश्च सति भावलिंगेन मोक्ष प्राप ! ( भावमलेण य जीवो) भावमलेनापरिशुद्धपरिणामेन जिनसम्यक्त्वरहिततया। ( बाहिरसंगम्मि मयलियइ) बालसंगे सति मइलियइ-मलिनो भवति सम्यक्त्वं विना निर्ग्रन्थोऽपि सग्रन्थो भवतीति भावार्थः । स्याद्भावेन मोक्षो द्रव्यलिंगीपेक्षत्वात्, स्याद्व्यलिगेन मोक्षो भावलिंगापेक्षत्वात्, स्यादुभयं क्रमापितोभयत्वात्, स्यादवाच्यं युगपद्वक्तुमशक्य
विशेषार्थ-संस्कृत टीका-कार इस गाथाका भाव निम्न प्रकार प्रकट करते हैं । हे आत्मन् ! तू पहले जिनलिङ्ग को धारण कर अर्थात् पहले नग्न हो पीछे अभ्यन्तर भाव अर्थात् जिन सम्यक्त्वके परिणाम से दोष रहित हो। यहाँ तात्पर्य यह है कि द्रव्यलिङ्ग के बिना भावलिङ्गी होने पर भी अर्थात् सम्यग्दृष्टि होनेपर भी यह जीव मोक्षको नहीं प्राप्त कर सकता है । क्योंकि शिवकुमार मुनि भावलिङ्गी अर्थात् सम्यग्दृष्टि होकर भी स्वर्ग गये थे, न कि मोक्ष । और जम्बूस्वामीके भवान्तर वर्णनमें भव-देव बड़े कष्टसे, द्रव्य-लिङ्गी हुआ था और उसके होनेपर बाद में भावलिङ्ग के द्वारा मोक्ष को प्राप्त हुआ था। भावमल अर्थात् अपरिशुद्ध परिणाम के द्वारा जिन-सम्यक्त्व से रहित होनेके कारण यह जीव बाह्य पदार्थोका संग होनेपर मलिन हो जाता है अर्थात् सम्यक्त्व के बिना निग्रंन्थ भी सग्रन्थ हो जाता है । यहाँ द्रव्य-लिङ्ग और भावलिङ्ग के विषय में एकान्तका पक्ष छोड़कर स्याद्वाद की पद्धति पर सात भङ्गों की योजना करना चाहिये। १ कथंचित् भाव-लिङ्ग से मोक्ष होता है क्योंकि उसमें द्रव्य लिङ्गकी भी अपेक्षा रहती है, २ कथंचित् द्रव्य-लिङ्ग से मोक्ष होता है क्योंकि उसमें भाव-लिङ्ग की भी अपेक्षा रहती है, ३ कथंचित् दोनों लिङ्गोसे मोक्ष प्राप्त होता है क्योंकि क्रमसे दोनों की अपेक्षा रहती है, ४ कथंचित् मोक्षका कारण अवक्तव्य है क्योंकि एक साथ दोनोंका कथन नहीं हो सकता। ५ कथंचित् मोक्षका कारण भावलिङ्ग है तथा अवक्तव्य भी है, ६ कथंचित् मोक्षका कारण द्रव्य लिङ्ग भी है तथा अवक्तव्य भी है और ७ कथंचित् मोक्षका कारण द्रव्य-लिङ्ग, भाव-लिङ्ग दोनों हैं तथा अवक्तव्य भी है।
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