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________________ -५. ६४] भावप्राभृतम् ३९१ गोचरत्वे गम्यत्वेऽतीता अगम्या वक्तुं न शक्यन्ते-तत्सदृशानां केवलज्ञानिनां गम्या इत्यर्थः । 'अरसमरूवमगंधं अव्वत्तं चेयणागुणसमदं । जाणमलिंगग्गहणं जीवमणिहिट्ठसंठाणं ॥६॥ अरसमरूपमगन्धमव्यक्तं चेतनागुणसमान्र । जानीहि अलिङ्गग्रहणं जीवमनिर्दिष्टसंस्थानं ॥६४।। ( अरसं ) मधुरामलकटुतिक्तकषायपंचरसरहितं हे जीव ! त्वं जीवं जानीहि । ( अरूवं) श्वेतपीतहरितारुणकृष्णलक्षणपंचरूपरहितं जीवमात्मानं जानीहोति दीपकं सम्बन्धनीयं (अगंधं ) सुरभिदुरभिलक्षणगन्धद्वयजितं जीवपदार्थ जानीहि । ( अन्वत्तं) अव्यक्तं इन्द्रियानिन्द्रियाणामगोचरत्वादस्फुटं, केवलज्ञानिनां व्यक्तं स्फुटं जीवतत्वं हे जीव ! भेदज्ञानसमृद्धान्तरात्मन् ! जानीहि । निषेधं कृत्वा विधि दर्शयन्ति-( चेयणागुणसमदं ) चेतनागुणेन ज्ञप्तिमात्रेण सम्यकप्रकारेणाद्र परिणतं । समिद्धमिति पाठे चेतनागुणेन ज्ञानगुणेन समृद्धमिति व्याख्येयं । ( जाणमलिगग्गहणं ) जाण जानीहि त्वं हे जीव ! अलिंगग्रहणं स्त्रीपुनपुंसकलिंगत्रयस्य महिमा वचनों से नहीं कही जा सकती किन्तु उन्हीं के समान केवल ज्ञानियों के द्वारा जानी जा सकती है ॥६३॥ ___ गाथार्थ हे आत्मन् ! तू जीवको रस रहित, रूप रहित, गन्ध · रहित, अव्यक्त, चेतना गुणसे युक्त, स्त्री पुरुषादि लिङ्गसे रहित और संस्थान से शून्य जान ॥६४॥ विशेषार्थ-किसी भी पदार्थ का स्वरूप वर्णन करने के लिये दो पद्धतियाँ अपनाई जाती हैं एक स्वरूप के उपादान की और दूसरी पररूप के अपोहन-निराकरण की। यहां स्वरूप के उपादान की पद्धति को दष्टि में रखकर जीवका लक्षण कहा गया है-चेतना गुण समा अर्थात् जो चेतना गुण से सम्यक् प्रकार आर्द्र है-तद्रूप परिणत है अथवा जो चेतना गुण से समृद्ध है-सम्पन्न है, वह जीव है। और पररूप-अपोहन की पद्धति के अनुसार कहा गया है जो अरस-रसादि से रहित हो, वह जीव है। अरस आदि विशेषणोंका भाव इस प्रकार है । मधुर, खट्टा, कडुआ, चिरपरा और कषायला ये रस के पांच भेद हैं तथा पुद्गल के परिणमन हैं, अतः जीव इससे रहित है, सफेद, पीला, हरा, लाल और काला ये १. समयसारे नियमसारे पाली मावा दस्यते । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004241
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorShrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2004
Total Pages766
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size13 MB
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