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३९२ षट्प्राभृते
[५. ६५ग्रहण स्वोकारस्तेन रहितं जीवमात्मानं विदांकुरु। व्यवहारनयेन यद्यपीयं स्त्री अयं पुमान् इदं नपुंसकमिति भण्यते तथापि निश्चयनयेनात्मा शुद्धबुद्ध कस्वभावों न लिंगत्रयवानिति । ( जीवमणिहिट्ठसंठाणं ) जीवमात्मानं, अनिदिष्टसंस्थानं न निर्दिष्टानि जिनागमे प्रतिपादितानि संस्थानानि षडाकृतयो यस्येति अनिर्दिष्टसंस्थानस्तं जानीहि । अथ कानि तानि संस्थानानि यात्यात्मनो निश्चयनयेन नैव वर्तन्ते इति चेत् ? तन्नामनिर्देशः क्रियते-समचतुरस्रसंस्थानं (१) न्यग्रोधपरिमण्डलसंस्थानं (२) स्वात्यपरनाम-वाल्मिकसंस्थानं (३) कुब्जकसंस्थानं (४) वामनसंस्थानं (५) हुंडकसंस्थानं चेति । (६) नामानुसारेण शरीराकारो ज्ञातव्यं इति तात्पर्य ।
भावहि पंचपयारं गाणं अण्णाणणासणं सिग्छ । भावणभावियसहिओ दिवसिवसुहभायणो होइ ॥६५॥
पाँच रूप के भेद हैं तथा पुद्गल के परिणमन हैं अतः जीव इनसे रहित है। सुगन्ध और दुर्गन्ध के भेदसे गन्ध दो प्रकार का है तथा दोनों ही पुद्गल के परिणमन हैं अतः जीव इनसे रहित है । जीव अव्यक्त है अर्थात् इन्द्रिय और मनके अगोचर होनेके कारण अव्यक्त है-अस्पष्ट है, यह जीव केवल-ज्ञानियों को स्पष्ट है। लिङ्ग के तीन भेद हैं-स्त्रीलिङ्ग, पुलिङ्ग और नपुसक लिङ्ग । ये तीनों हो लिङ्ग पुद्गल द्रव्य के परिणमन हैं इसलिये जोवका इनके द्वारा ग्रहण नहीं होता है। यद्यपि व्यवहारनय से यह स्त्री है, यह पुरुष है और यह नपुंसक है, ऐसा कहा जाता है तथापि निश्चयनय से आत्मा एक शुद्ध बुद्ध स्वभाव वाला हो है, तीन लिङ्गसे युक्त नहीं है। संस्थान शरीर को आकृति को कहते हैं और वह आकृति स्पष्ट हो पुद्गल द्रव्यका परिणमन है अतः आत्मा उनसे रहित है। जिनागममें प्रतिपादित छह संस्थानोंमें से जीवके एक भी संस्थान नहीं है, अतः जीव अनिर्दिष्ट संस्थान है।
प्रश्न-वे संस्थान कौन हैं जो निश्चयनयसे आत्माके नहीं हैं ?
उत्तर-(१) समचतुरस्र संस्थान (२) न्यग्रोध परिमण्डल संस्थान (३) स्वाति अथवा वाल्मिक संस्थान (४) कुब्जक संस्थान (५) वामन संस्थान और (१) हुण्डक संस्थान । इन संस्थानों में इनके नामके अनुसार ही शरीरको आकृति होती है ॥६४॥
गावार्थ-हे जीव ! तू शीघ्र ही अज्ञानको नष्ट करने वाले पाँच
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